
पटना, 11 जून 2025
बिहार में होने वाले आगामी विधानसभा चुनाव के लिए अब बस कुछ ही महीने शेष बचे हैं। इसी के चलते अब पार्टियों के बीच सीटों को लेकर के खींचतान शुरू हो गई है। अक्टूबर-नवंबर में होने वाले चुनाव के लिए भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी-मार्क्सवादी-लेनिनवादी (सीपीआई-एमएल) ने राज्य में 40-45 सीटों पर चुनाव लड़ने का दावा पेश कर महागठबंधन में पहले ही अपनी स्थिति साफ कर दी है।
सीपीआई-एमएल महासचिव दीपांकर भट्टाचार्य ने 40-45 सीटों पर चुनाव लड़ने की योजना की घोषणा की है, जो 2020 में लड़ी गई 19 सीटों से दोगुनी से भी अधिक है, जिसमें से उन्होंने 12 सीटें जीती थीं, जो एक महत्वपूर्ण स्ट्राइक रेट है। भट्टाचार्य ने मंगलवार को यहां मीडियाकर्मियों से बातचीत करते हुए कहा, “हम 2025 के बिहार विधानसभा चुनाव में 40 से 45 सीटों पर चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे हैं।” सीपीआई-एमएल 12 जून को पटना में होने वाली महागठबंधन समन्वय समिति की बैठक में अपना पक्ष मजबूती से रखने की योजना बना रही है। सीटों की उसकी मांग से राष्ट्रीय जनता दल पर दबाव बढ़ गया है, जिसकी परंपरागत रूप से गठबंधन में बड़ी हिस्सेदारी है।इस कदम से आंतरिक सीट बंटवारे के समीकरण बिगड़ सकते हैं, जिससे आरजेडी और कांग्रेस को सीपीआई-एमएल की बढ़ती ताकत को समायोजित करने के लिए मजबूर होना पड़ सकता है। उन्होंने कहा कि सीपीआई-एमएल 12 से 27 जून तक राज्य के चार प्रमुख क्षेत्रों जैसे शाहाबाद, मगध, चंपारण और तिरहुत में “बदलो सरकार, बदलो बिहार” शीर्षक से अभियान यात्राएं आयोजित करने की तैयारी कर रही है।
पार्टी 11 से 14 जून तक बाराचट्टी, वारसलीगंज, राजगीर और बिहारशरीफ में रैलियों और बैठकों के माध्यम से जन-आंदोलन के प्रयासों का लक्ष्य बना रही है। सीपीआई-एमएल की मुखरता से पता चलता है कि वह खुद को एक मामूली सहयोगी से अधिक के रूप में देखती है, और वह बातचीत की शक्ति और दृश्यता चाहती है। महागठबंधन में सीट बंटवारे की बातचीत की सफलता या विफलता एनडीए के खिलाफ विपक्षी एकता को प्रभावित कर सकती है।
2020 में जब वीआईपी को छोड़ दिया गया और उसके नेता मुकेश सहनी एनडीए खेमे में चले गए तो इसे गलत तरीके से संभाला गया और इससे महागठबंधन और तेजस्वी यादव को गहरी ठेस पहुंची। एनडीए की तरफ से लोक जनशक्ति पार्टी-रामविलास और राष्ट्रीय लोक मोर्चा जैसी छोटी पार्टियां भी सीट बंटवारे में बड़ी भूमिका के लिए भाजपा पर दबाव बना रही हैं। दोनों गठबंधनों को अब अपने प्रभाव का विस्तार करने के उद्देश्य से छोटे घटकों की ओर से दबाव की राजनीति का सामना करना पड़ रहा है।
वहीं अब देश में होने वाली जातीगत जनगणना भी इस चुनाव में एक अहम मुद्दा होने वाली है, जिसे सभी पार्टियां अपने-अपने तरीके से जनता के सामने पेश कर रही हैं। आने वाले आगामी कुछ महीनों में ये देखना दिलचस्प होगा की इस बार बिहार में वे कौन से मुद्दे रहते हैं, जिनसे इस चुनाव में पार्टियों की आगें की दिशा तय होगी।