लखनऊ : उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी के लिए साल 2025 राहत और रंज, हौसले और हताशा के बीच झूलता रहा। फैजाबाद लोकसभा सीट की शिकस्त ने पार्टी को झकझोर दिया था, लेकिन मिल्कीपुर उपचुनाव की बड़ी जीत ने माहौल को कुछ हद तक संभाल लिया। दूसरी ओर स्वार की हार, गोंडा कांड और संगठन के भीतर उभरी खींचतान ने यह साफ कर दिया कि आने वाली सियासी जंग सिर्फ सरकार के कामकाज के भरोसे नहीं, बल्कि मजबूत, साफ-सुथरे और भरोसेमंद संगठन से ही लड़ी जा सकती है।
2024 के चुनाव में करारे झटके से शुरू हुआ सफर
साल 2025 की सियासत को समझने के लिए 2024 के लोकसभा चुनाव का जिक्र जरूरी हो जाता है। दरअसल 2014 से लगातार लोकसभा और विधानसभा चुनावों में शानदार प्रदर्शन कर रही भाजपा को 2024 में उत्तर प्रदेश में करारा झटका लगा। राजनीतिक जानकारों ने इसके अलग-अलग कारण गिनाए। पार्टी ने कई ऐसी सीटों पर कमजोर छवि वाले सांसदों के टिकट नहीं काटे, जहां नाराजगी साफ नजर आ रही थी। सांसद विरोधी माहौल को नजरअंदाज किया गया, जिसका असर सीधे कार्यकर्ताओं के जोश पर पड़ा। इसके साथ ही यह चर्चा भी आम रही कि ज्यादा सीटें जीतने पर योगी आदित्यनाथ को हटाया जा सकता है, जिससे पार्टी के भीतर असमंजस बढ़ा।
संविधान और आरक्षण जैसे मुद्दों पर विपक्ष के हमलों का संतुलित जवाब नहीं दिया जा सका और पिछड़े व दलित तबके के युवाओं को यह भरोसा दिलाने में पार्टी नाकाम रही कि उनके हित सुरक्षित हैं। इन तमाम वजहों का असर नतीजों में साफ दिखा। समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के गठबंधन ने भाजपा और उसके सहयोगियों को कुल 80 लोकसभा सीटों में आधे से भी कम, यानी 36 सीटों पर रोक दिया। भाजपा खुद 33 सीटें जीत सकी, जबकि सहयोगी दलों को तीन सीटों से संतोष करना पड़ा। पार्टी का वोट शेयर भी पहले के मुकाबले खिसका। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी वाराणसी और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह लखनऊ से लगातार तीसरी बार जीतने में कामयाब रहे, लेकिन केंद्र सरकार के कई मंत्री चुनाव हार गए। कांग्रेस ने रायबरेली सीट पर कब्जा बनाए रखा और अमेठी में केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी को हराकर गांधी परिवार ने पुराना हिसाब बराबर कर लिया।
अयोध्या में श्रीराम मंदिर निर्माण के बाद यह पहला लोकसभा चुनाव था, लेकिन यहीं भाजपा को सबसे बड़ा सियासी झटका लगा। अयोध्या मंडल की फैजाबाद, बाराबंकी, अंबेडकरनगर, सुल्तानपुर और अमेठी सीटें पार्टी के हाथ से निकल गईं। पास की बस्ती और श्रावस्ती सीट भी भाजपा नहीं बचा सकी। फैजाबाद से सपा के अवधेश प्रसाद की जीत के बाद उनकी छोड़ी गई मिल्कीपुर विधानसभा सीट पर उपचुनाव हुआ और यहीं से साल 2025 की सियासत की नई कहानी शुरू हुई।
मिल्कीपुर की जीत ने जख्मों पर लगाया मरहम
अयोध्या जिले की मिल्कीपुर विधानसभा सीट पर 5 फरवरी 2025 को उपचुनाव हुआ और 8 फरवरी को नतीजे सामने आए। यह सीट अवधेश प्रसाद के लोकसभा सांसद बनने के बाद खाली हुई थी। भाजपा ने यहां चंद्रभानु पासवान को मैदान में उतारा, जिन्होंने सपा के अजीत प्रसाद को 61,710 वोटों के भारी अंतर से मात दी। फैजाबाद लोकसभा सीट की हार के बाद पार्टी पर जबरदस्त दबाव था, ऐसे में मिल्कीपुर की जीत ने भाजपा को बड़ी राहत दी। इस चुनाव में दलित और गैर-यादव पिछड़ा वर्ग भाजपा के साथ खड़ा नजर आया, जिससे पार्टी का आत्मविश्वास लौटा।

हालांकि 2025 के बाकी उपचुनावों में तस्वीर एक जैसी नहीं रही। रामपुर की स्वार विधानसभा सीट पर भाजपा को हार का सामना करना पड़ा। यहां मुसलमान मतदाताओं का रुझान एकतरफा सपा की ओर रहा और भाजपा की अंदरूनी खींचतान भी खुलकर सामने आई। मऊ की घोसी सीट पर भाजपा ने जीत जरूर दर्ज की, लेकिन बेहद मामूली अंतर से। इससे यह संकेत मिला कि पूर्वांचल में पार्टी की पकड़ पहले जैसी मजबूत नहीं रह गई है। Milkipur By Election News
बेलगाम जिलाध्यक्षों ने कराई संगठन की किरकिरी
साल 2025 में भाजपा को सबसे ज्यादा शर्मिंदगी गोंडा से झेलनी पड़ी। यहां के जिलाध्यक्ष अमर किशोर कश्यप का पार्टी दफ्तर के अंदर एक महिला के साथ आपत्तिजनक वीडियो सामने आया, जो देखते ही देखते सोशल मीडिया पर वायरल हो गया। मामला ऊपर तक पहुंचा और आखिरकार पार्टी ने उन्हें निष्कासित कर दिया। इस घटना ने भाजपा के अनुशासन और नैतिकता के दावों को कमजोर किया और विपक्ष को बैठे-बिठाए बड़ा मुद्दा मिल गया।

संगठन को लेकर दूसरी जगहों से भी शिकायतें सामने आईं। लखीमपुर खीरी में भाजपा जिलाध्यक्ष पर पंचायत और संगठन के पदों में पैसे लेकर नाम आगे बढ़ाने के आरोप लगे। कई मंडल और ब्लॉक स्तर के कार्यकर्ताओं ने इसकी शिकायत प्रदेश नेतृत्व से की, जिससे जिले में संगठन बिखरा हुआ नजर आया। आजमगढ़ में बाहर से आए नेताओं को ज्यादा तरजीह दिए जाने से पुराने कार्यकर्ता नाराज दिखे। टिकट और कार्यक्रमों में नए चेहरों को आगे रखने का असर जमीनी स्तर पर साफ नजर आया। वहीं प्रतापगढ़ में जिलाध्यक्ष और भाजपा विधायक के बीच लंबे समय तक तनातनी चलती रही, जिससे बूथ स्तर की तैयारी प्रभावित हुई और संगठन दो हिस्सों में बंटा नजर आया। Amar Kishore Kashyap BJP News
सपा के पीडीए का जवाब देने में खूब की कसरत
इसी बीच समाजवादी पार्टी ने 2025 में PDA यानी पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक की सियासत को पूरी ताकत से आगे बढ़ाया। भाजपा ने इसके जवाब में सरकार की योजनाओं और लाभार्थियों को केंद्र में रखा। मिल्कीपुर जैसी सीटों पर यह रणनीति कामयाब रही, लेकिन स्वार जैसे इलाकों में PDA का असर साफ दिखाई दिया।
रोजगार सृजन से युवाओं को लुभाया
2025 में भाजपा ने युवाओं को साधने के लिए रोजगार और स्वरोजगार को बड़ा मुद्दा बनाने की कोशिश की। सरकारी भर्तियों में तेजी, लंबित परीक्षाओं के परिणाम जारी करने, पुलिस और शिक्षक भर्ती की घोषणाओं के जरिए यह संदेश देने का प्रयास किया गया कि सरकार रोजगार सृजन को लेकर गंभीर है। मुख्यमंत्री और मंत्रियों के स्तर से बार-बार यह कहा गया कि नियुक्तियों में पारदर्शिता लाई गई है और पहले की तुलना में बिना पर्ची–बिना खर्ची की व्यवस्था लागू हुई है। हालांकि जमीनी स्तर पर प्रतियोगी छात्रों की नाराजगी, पेपर लीक की आशंकाएं और निजी क्षेत्र में सीमित अवसरों के कारण यह प्रयास हर इलाके में समान असर नहीं छोड़ सका, लेकिन तमाम क्षेत्रों में युवाओं का एक वर्ग भाजपा के साथ जुड़ता नजर आया।

लंबे इंतजार के बाद संगठन को मिला नया मुखिया
प्रदेश अध्यक्ष को लेकर भी साल भर असमंजस बना रहा। भूपेंद्र सिंह चौधरी ज्यादातर समय प्रदेश अध्यक्ष बने रहे और नए अध्यक्ष को लेकर चर्चाएं चलती रहीं। इससे संगठन में ढील और भ्रम की स्थिति बनी रही। आखिरकार दिसंबर 2025 में भाजपा ने महाराजगंज से सांसद और केंद्रीय मंत्री पंकज चौधरी को उत्तर प्रदेश भाजपा का नया प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त कर दिया। पार्टी ने इसे 2027 के विधानसभा चुनाव की तैयारी की अहम कड़ी बताया।

कफ सिरप पर सपा को दिया करारा जवाब
साल के आखिरी महीनों में कोडीनयुक्त कफ सिरप का मामला भी सियासी तकरार का बड़ा मुद्दा बना। अवैध और नशीले कफ सिरप की बरामदगी, बच्चों और युवाओं तक इसकी पहुंच के आरोपों ने सरकार की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े किए। विपक्ष ने इस मुद्दे को हाथों-हाथ लिया। सरकार की ओर से कहा गया कि उत्तर प्रदेश में नशे के खिलाफ ज़ीरो टॉलरेंस की नीति है और लगातार हो रही कार्रवाई उसी का नतीजा है। मुख्यमंत्री द्वारा सपा से कथित संबंधों का जिक्र करने पर सपा मुखिया ने भी तीखा जवाब दिया और सत्ताधारी दल पर पलटवार किया।

पहले पीएम आए अयोध्या, अब आएंगे रक्षा मंत्री
राम मंदिर निर्माण के बाद अयोध्या में राष्ट्रीय और राजनीतिक गतिविधियां लगातार बढ़ी हैं। इसी क्रम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा मंदिर परिसर में ध्वजारोहण किया जाना भाजपा के लिए प्रतीकात्मक और सियासी दोनों दृष्टि से अहम माना गया। इसे राम मंदिर आंदोलन की पूर्णता और केंद्र सरकार की भूमिका के संदेश के तौर पर देखा गया। वहीं 31 तारीख को रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह का अयोध्या आगमन प्रस्तावित है, जिससे एक बार फिर अयोध्या राष्ट्रीय राजनीति के केंद्र में आ गई है।

ब्रम्होस प्रोडक्शन, राष्ट्र प्रेरणा स्थल की खुशनुमा यादों संग 2026-27 के लिए हैं कई चुनौती
फिलहाल लखनऊ में ब्रह्मोस मिसाइल उत्पादन की उपलब्धि और राष्ट्र प्रेरणा स्थल की सकारात्मक यादों के साथ साल 2025 विदा होने को है, लेकिन आगे की राह आसान नहीं है। साल 2026 में पंचायत चुनाव और 2027 में विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा और सपा दोनों के लिए सियासी अग्निपरीक्षा होगी। नवंबर 2026 में राज्यसभा की दस सीटें खाली होंगी, जिनमें नौ भाजपा और एक सपा के सांसद रिटायर होंगे। ऐसे में दोनों दलों को न सिर्फ अपने विधायकों को टूटने से बचाना होगा, बल्कि ज्यादा से ज्यादा सीटें जीतकर उच्च सदन में अपनी ताकत भी बढ़ानी होगी। कुल मिलाकर 2025 ने भाजपा को यह साफ संदेश दे दिया कि सत्ता के साथ-साथ संगठन को भी दुरुस्त करना वक्त की सबसे बड़ी जरूरत है। अब निगाहें 2026 की तैयारी और 2027 की निर्णायक जंग पर टिकी हैं।








