वाराणसी, 25 अक्टूबर 2024
देश के चर्चित ज्ञानवापी मामले को लेकर कोर्ट ने आज शुक्वार को सुनवाई करते हुए अहम फैसला सुनाया है फैसले से हिंदू पक्ष को कोर्ट से बड़ा झटका लगा है। बता दे कि एएसआई ने 18 दिसंबर को सीलबंद लिफाफे में अपनी सर्वे रिपोर्ट जिला अदालत को सौंपी थी। आज इस विवाद से जुड़े एक महत्वपूर्ण फैसले में वाराणसी के सिविल जज सीनियर डिविजन फास्ट ट्रैक कोर्ट ने हिंदू पक्ष की एएसआई सर्वे की मांग को खारिज कर दिया। अपील खारिज होने के बाद हिंदू पक्ष ने हाई कोर्ट जाने का फैसला किया। फैसले के बाद पत्रकारों से बात करते हुए हिंदू पक्ष के वकील विजय शंकर रस्तोगी ने कहा, “कोर्ट ने एएसआई द्वारा पूरे ज्ञानवापी क्षेत्र की सुरक्षा के अतिरिक्त सर्वेक्षण के हमारे आवेदन को खारिज कर दिया है। हम इस फैसले के खिलाफ हाई कोर्ट जाएंगे।”समय सीमा के भीतर, 30 दिनों के भीतर।”
“यह निर्णय नियमों और तथ्यों के विरुद्ध है। मैं इससे परेशान हूं और ऊपरी अदालत में जाकर इसे चुनौती दूंगा 8 मार्च 2021 के आदेश के मुताबिक सर्वे के लिए एएसआई को 5 सदस्यीय कमेटी नियुक्त करनी थी, जिसमें एक व्यक्ति अल्पसंख्यक समुदाय के और केंद्रीय विश्वविद्यालय के एक विशेषज्ञ के साथ इन सभी को एएसआई सर्वे करना था। पिछला सर्वे एएसआई ने ही किया था जिसमें उच्च न्यायालय ने पुष्टि की थी कि सर्वेक्षण उस आदेश 8 मार्च 2021 के अनुपालन में नहीं था। हम तत्काल आधार पर उच्च न्यायालय जाएंगे…”, उन्होंने आगे कहा, “यह एक कानूनी कार्यवाही है; यह जीत और हार के बारे में नहीं है। हम कोई भी निर्णय लेने से पहले सभी बयानों और विवरणों को पढ़ेंगे। फर्स्ट ट्रैक कोर्ट ने अतिरिक्त एएसआई सर्वेक्षण के लिए आवेदन को खारिज करते हुए एक आदेश पारित किया है।” फिलहाल हम कुछ नहीं कह सकते, क्योंकि हमने पूरा ऑर्डर नहीं देखा है।”
बता दें कि हिंदू पक्ष की मांग थी कि वजूखाने के अलावा पूरे परिसर का सर्वे होना चाहिए, लेकिन कोर्ट ने उनकी बात नहीं मानी। हिंदू पक्ष का कहना है कि सेंट्रल डोम के नीचे ही शिवलिंग है, हिंदू पक्ष के अनुसार अर्घे से भौगोलिक जल निरंतर बहता था जो ज्ञानवापी कुंड में एकत्र होता था। इस तीर्थ को ‘ज्ञानोदय तीर्थ’ भी माना जाता है। हिंदू पक्ष का कहना है कि ज्ञानोदय तीर्थ से प्राप्त ‘शिवलिंग’ की भी जांच की जानी चाहिये ताकि यह पता लगाया जाए कि वह शिवलिंग है या फव्वारा।
करीब 35 साल पहले हुई थी मामले की शुरूआत
वैसे तो ये मामला कई सालों से चला आ रहा है। करीब 35 साल पुराने इस मामले की शुरुआत साल 1991 में हुई थी, जब हरिहर पांडे, सोमनाथ व्यास और रामरंग शर्मा की ओर से मस्जिद के मालिकाना हक के लिए एक याचिका दाखिल की गई। इसके बाद से यह मामला कानूनी दाव-पेंचों में उलझा हुआ है। वर्षों की सुनवाई के बाद हिंदू पक्ष ने वाराणसी की फास्ट ट्रैक कोर्ट में वजूखाने का एएसआई सर्वे करने की याचिका दायर की। हिंदू पक्ष का दावा है कि यह मस्जिद पहले एक मंदिर थी और वहां आज भी शिवलिंग के अवशेष मौजूद हो सकते हैं।