अनमोल शर्मा
मेरठ, 7 फरवरी 2025:
सुबह की पहली किरण जब मेरठ जिला कारागार की ऊंची दीवारों को छूती है, तब एक कमरे में रजनीश कुमार अपनी कलम से जिंदगी के सबक उकेर रहा होता है। 22 साल पहले की वह शाम उसे आज भी याद है, जब एक युवा लड़के के रूप में वह अपने सपनों को लेकर इंटर की परीक्षा में बैठा था। कौन जानता था कि नियति उसे कहां ले जाएगी?
त्रासदी बनी एक प्रेम कहानी
प्रेम की एक कहानी, जो त्रासदी में बदल गई। एक युवती, जिससे दिल का रिश्ता जुड़ा, अचानक इस दुनिया से चली गई। और फिर कुछ ही समय में लड़की के दादा, पिता और भाई की हत्या हो गयी आरोप लगा रजनीश पर और रजनीश के जीवन का पहिया घूम गया। वही रजनीश, जो किताबों के बीच अपना भविष्य तलाश रहा था, अब जेल की सलाखों के पीछे अपने अतीत को टटोल रहा था।
अँधेरे में फूटी रौशनी की किरण
लेकिन कहते हैं न, हर अंधेरे में रोशनी की एक किरण छिपी होती है। इक्कीस साल की जेल यात्रा ने रजनीश को एक नया नजरिया दिया। उसने महसूस किया कि जिंदगी की सबसे बड़ी कक्षा कभी-कभी सलाखों के पीछे भी हो सकती है। धीरे-धीरे उसकी कलम चलने लगी, और जन्म हुआ “मेरा आईना” की।
यह किताब बदल सकती है समाज के अपराधियों की दिशा
अठारह अध्यायों में उसने न सिर्फ अपनी कहानी लिखी, बल्कि जीवन के वो सबक भी साझा किए जो उसने कठिन रास्ते पर चलते हुए सीखे।
माता-पिता और बच्चों के रिश्ते, पति-पत्नी का प्यार, क्रोध पर काबू, सकारात्मक सोच की ताकत – हर विषय को रजनीश ने अपने अनुभवों की रोशनी में परखा है। “जब आप गुस्से में होते हैं,” वह लिखता है, “तो एक पल का निर्णय आपकी पूरी जिंदगी बदल सकता है। मैं जानता हूं, क्योंकि मैंने इसे जिया है।”
जेल के वरिष्ठ अधीक्षक डॉक्टर वीरेश राज शर्मा कहते हैं, “रजनीश की किताब सिर्फ शब्दों का संग्रह नहीं है, यह एक जीवंत उदाहरण है कि कैसे कोई व्यक्ति अपनी परिस्थितियों से ऊपर उठकर समाज के लिए कुछ सार्थक कर सकता है।”
निष्कर्ष: अंधेरे से उजाले की ओर
आज “मेरा आईना” की तीन सौ प्रतियां उत्तर प्रदेश की जेलों में पहुंच रही हैं। यह पहली बार है जब किसी कैदी की लिखी किताब इस तरह से सम्मान पा रही है। लेकिन रजनीश के लिए यह सिर्फ एक शुरुआत है। वह कहता है, “अगर मेरी किताब एक भी व्यक्ति को गलत रास्ते पर जाने से रोक सके, तो मैं समझूंगा कि मेरी जेल की सजा सार्थक हो गई।”
रजनीश की कहानी हमें याद दिलाती है कि आत्मसुधार की राह कभी बंद नहीं होती, बस हमें अपने भीतर झांकने की हिम्मत चाहिए।वह कहता है, “जीवन एक आईना है। आप जो दिखाते हैं, वही देखते हैं। आज रजनीश का “मेरा आईना” सिर्फ एक किताब नहीं, बल्कि उम्मीद की एक नई किरण बन गयी है।