हरेन्द्र दुबे
लखनऊ, 6 नवम्बर, 2024:
प्रसिद्ध छठ गायिका और लोकगीतों की मर्मस्पर्शी आवाज़, शारदा सिन्हा का 5 अक्टूबर 2024 को दिल्ली के एम्स अस्पताल में निधन हो गया। छठ पर्व के गीतों को अपने सुरीले स्वरों में पिरोकर पूरे भारत में इस पर्व को लोकप्रिय बनाने वाली शारदा सिन्हा का जाना लोकसंगीत के क्षेत्र के लिए अपूरणीय क्षति है। उनके निधन से छठ व्रत करने वाले श्रद्धालुओं के बीच शोक की लहर दौड़ गई है। भक्तजन अब छठ मईया से उनकी आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना कर रहे हैं।

शारदा सिन्हा ने अपने सुमधुर गीतों से न केवल भोजपुरी बल्कि अवधी और हिंदी भाषी क्षेत्रों में भी लोकप्रियता हासिल की। उनका गीत “कांचे ही बास के बहंगिया, बहंगी लचकत जाए” और “उजर बगुला बिन पिपरौ न सोहे, कोयल बिन बगिया न सोहे राजा” सुनने वालों के दिलों को छू जाता है। इन गीतों ने उन्हें अमर बना दिया और उनके गीतों को सुन-सुनकर कई पीढ़ियां बड़ी हुई हैं। छठ पर्व की शुरुआत के पहले दिन ही उन्होंने इस दुनिया को अलविदा कहा, लेकिन उनके गाने लोगों के दिलों में हमेशा जिंदा रहेंगे।
उनके गीतों में प्रकृति और मानव संस्कृति की एकात्मकता को अनोखे ढंग से उकेरा गया है। उनका गीत “अमवा महुवा के झूमे डलिया” और “उजर बगुला बिन पिपरा न सोहे, कोयल बिन बगिया न सोहे” में भी प्रकृति और मनुष्य के रिश्ते को सजीव किया गया है। जब भी यह गीत कानों तक पहुंचता है, मन इसे गुनगुनाए बिना नहीं रह पाता।
शारदा सिन्हा की आवाज़ का जादू अब केवल उनके गीतों में बसा है। छठ पर्व और भारतीय लोक संगीत को उनकी अनुपस्थिति का हमेशा आभास रहेगा। जैसे उनके गीत में कहा गया है, “कोयल बिन बगिया न सोहे,” वैसे ही लोकसंगीत की यह बगिया उनकी मधुर आवाज़ के बिना हमेशा अधूरी लगेगी।