वाराणसी,8 सितम्बर,2024
अंशुल मौर्य
सूर्य या लोलार्क षष्ठी सोमवार 9 सितंबर को है। काशी के लोलार्क कुंड या सूर्य कुंड में स्नान करने की परंपरा है। लोलार्क कुंड से जुड़ी कुछ मान्यताएं हैं जिसकी वजह से यहां स्नान करने के लिए बड़ी संख्या में लोग आते हैं। दरसल, लोलार्क कुंड में स्नान मात्र से निःसन्तान दंपत्तियों की मन्नत पूरी होती है। आस्था और विश्वास की डुबकी मात्र से सूनी गोद में किलकारी गूंजती है। वैसे तो काशी तीर्थनगरी की हर नदी, कुंड, तालाब को ही जलतीर्थ की मान्यता मिली हुई है। इसी में से एक लोलार्क कुंड भी है।
मान्यता है लोलार्क षष्ठी के दिन कुण्ड में स्नान करने और लोलार्केश्वर महादेव की पूजा करने से संतान की प्राप्ति और शारीरिक कष्टों से मुक्ति मिलती है। यहीं कारण है कि भाद्रपद शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को लोलार्क कुंड में स्नान के लिए दंपती बिहार, छत्तीसगढ़, झारखंड, महाराष्ट्र, बंगाल, नेपाल सहित आसपास के जिलों से काशी पहुंचते हैं। काशी के तीर्थ पुरोहित पं. कन्हैया तिवारी बताते हैं कि संतान की कामना से दंपती लोलार्क छठ के दिन भदैनी स्थित लोलार्क कुंड में तीन बार डुबकी लगाकर स्नान करते हैं। कुंड में स्नान के बाद दंपती को एक फल का दान कुंड में करना चाहिए। दंपती अपने भीगे कपड़े भी छोड़ देते हैं। कुंड में स्नान के बाद दंपती को लोलार्केश्वर महादेव के दर्शन करने चाहिए। स्नान के दौरान दंपती जिस फल का दान कुंड में करते हैं, मनोकामना पूर्ति तक उसे उसका सेवन नहीं करना चाहिए। ऐसा करने से भगवान सूर्य प्रसन्न होते हैं और स्नान करने वाली माताओं की मनोकामना पूरी होती है।





लोलार्क षष्ठी से जुड़ी एक पौराणिक कथा है, जिसमें बताया जाता है कि एक बार सूर्य देव ने विद्युन्माली नामक के एक राक्षस का वध कर दिया। वह बड़ा ही शिव भक्त था। उसके वध से भगवान शिव क्रोधित हो गए और सूर्य देव को मारने के लिए त्रिशूल उठा लिया। भगवान शिव के उग्र रूप को देखकर सूर्य देव डर गए और वे भागने लगे। वे शिव की नगरी काशी में आकर रुके, जहां पर उनके रथ का एक पहिया गिर गया। काशी में उनको शिव जी के क्रोध से राहत मिली। जिस स्थान पर सूर्य देव के रथ का पहिया गिरा था, उस स्थान का नाम लोलार्क पड़ गया। यहां पर सूर्य देव को भय से मुक्ति मिली थी, इसलिए हर साल लोलार्क षष्ठी पर लोग यहां स्नान करके अपने रोग और दोष से मुक्ति प्राप्त करते हैं।
काशी खंड के अनुसार भगवान सूर्य ने लोलार्क कुंड पर सैकड़ों वर्ष तक भगवान शिव की आराधना की थी। उन्होंने जो शिवलिंग यहां स्थापित किया उसे लोलार्केश्वर महादेव के नाम से जाना जाता है। स्कंद पुराण के काशी खंड के 32वें अध्याय में उल्लेख है कि माता पार्वती ने स्वयं इस कुंड परिसर में स्थित मंदिर में शिवलिंग की पूजा की थी। आज भी उदय होने वाले सूर्य की पहली किरण इस कुंड में पड़ती है और यहां स्नान मात्र से चर्म रोग दूर होते हैं और संतान कामना पूरी होती है।