नई दिल्ली,26 मार्च 2025
सरकारी कर्मचारियों के ट्रांसफर को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाया है। अदालत ने स्पष्ट किया है कि यदि कोई कर्मचारी अपनी मर्जी से ट्रांसफर लेता है, तो इसे ‘जनहित’ में हुआ ट्रांसफर नहीं माना जाएगा। ऐसे कर्मचारियों को नई तैनाती वाली जगह पर सबसे जूनियर माना जाएगा और वे अपनी पुरानी नौकरी के आधार पर सीनियरिटी का दावा नहीं कर सकते।
जस्टिस पी.एस. नरसिम्हा और मनोज मिश्रा की बेंच ने कर्नाटक हाई कोर्ट के एक मामले की सुनवाई के दौरान यह फैसला सुनाया। अदालत ने कहा कि यदि किसी कर्मचारी का ट्रांसफर जनहित में किया जाता है, तो उसे नई जगह पर भी पुरानी सीनियरिटी मिलती रहेगी। लेकिन स्वेच्छा से ट्रांसफर लेने वाले कर्मचारियों के मामले में पहले से कार्यरत कर्मियों के हितों का ध्यान रखना जरूरी है, क्योंकि बिना जनहित के ट्रांसफर से उनकी स्थिति को बदला नहीं जा सकता।
मामला कर्नाटक हाई कोर्ट से जुड़ा था, जहां 1985 में एक स्टाफ नर्स ने मेडिकल कारणों से फर्स्ट डिवीजन असिस्टेंट (FDA) के पद पर ट्रांसफर की मांग की थी। मेडिकल बोर्ड ने उनकी बीमारी की पुष्टि की और नर्स ने लिखित में दिया था कि उन्हें नई जगह पर सबसे जूनियर रखा जाए। 1989 में कर्नाटक सरकार ने उनके ट्रांसफर को मंजूरी दी और सीनियरिटी उसी वर्ष से निर्धारित की। लेकिन 2007 में नर्स ने इसे चुनौती दी और दावा किया कि उनकी सीनियरिटी 1979 से मानी जानी चाहिए, जब वे पहली बार स्टाफ नर्स के रूप में नियुक्त हुई थीं।
राज्य सरकार ने हाई कोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट का फैसला पलटते हुए कहा कि चूंकि नर्स ने स्वेच्छा से ट्रांसफर मांगा था और नई जगह पर जूनियर रहने को स्वीकार कर लिया था, इसलिए वे पुरानी नियुक्ति तिथि के आधार पर सीनियरिटी का दावा नहीं कर सकतीं। अदालत ने कहा कि हाई कोर्ट और ट्रिब्यूनल ने गलत तरीके से इस ट्रांसफर को जनहित में हुआ मान लिया।
इस फैसले का सरकारी कर्मचारियों पर बड़ा असर पड़ेगा। अब जो कर्मचारी अपनी मर्जी से ट्रांसफर लेंगे, उन्हें नई जगह पर सबसे जूनियर माना जाएगा, चाहे उन्होंने पहले कितने भी साल नौकरी की हो।