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साल के अंतिम कालाष्टमी व्रत पर बरसेगी भैरव कृपा, जानिए क्या है व्रत का नियम और पूजा मुहूर्त

इस साल की आखिरी कालाष्टमी पौष कृष्ण अष्टमी पर मनाई जा रही है, जिसमें भक्त शाम के समय भगवान भैरव की विशेष पूजा कर भय, कष्ट और बाधाओं से मुक्ति की कामना करते हैं

लखनऊ, 11 दिसंबर 2025 :

साल का आखिरी कालाष्टमी व्रत इस बार पौष मास के कृष्णपक्ष की अष्टमी तिथि पर मनाने की परंपरा है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार हर माह आने वाली इस तिथि को भगवान भैरव की उपासना करना अत्यंत शुभ माना जाता है। भगवान भैरव को भगवान शिव का रुद्र रूप माना गया है और इनके स्मरण से सभी प्रकार के भय, संकट और जीवन की बाधाएं दूर हो जाती हैं। भक्तों के बीच यह विश्वास है कि कालाष्टमी पर उपवास और पूजा करने से व्यक्ति निर्भय होकर जीवन का मार्ग तय कर पाता है।

कालाष्टमी उपवास में सायंकाल में पूजा का है खास विधान

पंचांग के अनुसार अष्टमी तिथि 11 दिसंबर को दोपहर 01:57 बजे शुरू होकर 12 दिसंबर को दोपहर 02:56 बजे तक रहेगी। कालाष्टमी का व्रत और पूजा सायंकाल में करने का विधान है, इसी कारण यह व्रत आज की शाम को ही रखा जाएगा। इस दिन भक्त विशेष रूप से भगवान भैरव के मंदिरों में जाकर दर्शन करते हैं और अपने घरों में भी विधि-विधान से पूजा करते हैं।

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सरल विधि से कैसे करें पूजन?

पूजा विधि के अनुसार कालाष्टमी पर सबसे पहले स्नान कर स्वयं को पवित्र किया जाता है, इसके बाद भगवान भैरव की प्रतिमा या चित्र पर गंगाजल छिड़ककर पूजा शुरू की जाती है। इसके बाद पुष्प, रोली, चंदन, काला तिल, फल, सरसों का तेल और काली उड़द जैसे सामग्री भगवान को अर्पित की जाती है। भैरवाष्टक का पाठ या ‘ॐ कालभैरवाय नमः’ मंत्र का जाप करने से पूजा का फल कई गुना बढ़ जाता है। अंत में भगवान भैरव की आरती करना अत्यंत आवश्यक माना गया है।

क्यों इतना महत्व रखती है कालाष्टमी?

धार्मिक मान्यता है कि कालाष्टमी पर श्रद्धा के साथ व्रत रखने से भगवान भैरव के साथ-साथ भगवान शिव का आशीर्वाद भी प्राप्त होता है। यह मान्यता है कि इस व्रत को करने वाले व्यक्तियों के सभी कष्ट, भय और बाधाएं समाप्त हो जाती हैं। जीवन में स्थिरता, सुख, समृद्धि और सौभाग्य बढ़ता है तथा व्यक्ति अपने विरोधियों पर भी विजय प्राप्त करता है।

कष्ट नाश और शुभ फल का दिन

साल की अंतिम कालाष्टमी भक्तों के लिए एक महत्वपूर्ण अवसर माना जा रहा है, क्योंकि इस दिन की पूजा और साधना को विशेष रूप से फलदायी बताया गया है। भक्त इस अवसर का इंतजार पूरे वर्ष करते हैं और भगवान भैरव की कृपा प्राप्त करने के लिए पूरी निष्ठा के साथ व्रत का पालन करते हैं।

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