इतिहास : 3 सितंबर
24 दिसंबर 1999 की तारीख को भुला पाना भारत के लिए मुश्किल है. उस दिन नेपाल की राजधानी काठमांडू के त्रिभुवन इंटरनेशनल एयरपोर्ट से इंडियन एयरलाइंस की फ्लाइट आईसी 814 ने नई दिल्ली के लिए उड़ान भरी. विमान में 176 यात्री सवार थे, जिनमें से कुछ विदेशी नागरिक भी शामिल थे. फ्लाइट को तय समय के अनुसार शाम को दिल्ली पहुंचना था, लेकिन जैसे ही विमान ने उड़ान भरी, पांच आतंकवादियों ने उसे हाईजैक कर लिया. इन आतंकियों के इरादे बेहद खतरनाक थे.
हाईजैक के बाद विमान को अमृतसर की ओर मोड़ दिया गया, क्योंकि उसमें ईंधन खत्म हो रहा था. अमृतसर में विमान को उतारने के बावजूद वह काम नहीं हो सका जिसके लिए उसे उतारा गया था. स्थिति को और भी जटिल बनाते हुए आंतकियों ने विमान को लाहौर की ओर उड़ाने का आदेश दिया. लाहौर में पाकिस्तानी एटीसी ने पहले विमान को उतरने की अनुमति नहीं दी, लेकिन बाद में मजबूरी में अनुमति दी और विमान में ईंधन भरा गया. इसके बाद विमान को संयुक्त अरब अमीरात के अल मिन्हाद एयर बेस पर ले जाया गया, जहां अपहरणकर्ताओं ने 27 यात्रियों को रिहा कर दिया. यहां से विमान को अफगानिस्तान के कंधार ले जाया गया.
हाईजैक करने वाले पांचों आतंकी पाकिस्तानी थे और उनका मुख्य मकसद भारत की जेलों में बंद तीन खतरनाक आतंकियों की रिहाई थी. ये तीन आतंकी थे – मसूद अजहर, अहमद उमर सईद शेख और मुश्ताक अहमद जरगर. जनवरी 2000 की विदेश मंत्रालय की रिपोर्ट के अनुसार, विमान में सवार अपहरणकर्ताओं ने अपने असली नाम छुपाए थे और वे काल्पनिक नामों जैसे चीफ, डॉक्टर, बर्गर, भोला और शंकर का उपयोग करते थे. असल में ये आतंकी हरकत-उल-मुजाहिदीन संगठन से जुड़े थे और इनके असली नाम थे इब्राहिम अतहर, शाहिद अख्तर सईद, सनी अहमद काजी, मिस्त्री जहूर इब्राहिम और शाकिर।
31 दिसंबर 1999 को भारत सरकार ने नागरिकों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए तीन आतंकियों की रिहाई पर सहमति जताई. इस निर्णय के बाद सभी नागरिकों को सुरक्षित भारत वापस लाया गया.