
लखनऊ, 7 जुलाई 2025:
यूपी के करीब 5000 प्राथमिक विद्यालयों के मर्जर संबंधी प्रदेश सरकार के फैसले को इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच से सोमवार को हरी झंडी मिल गई। कोर्ट ने सरकार के फैसले के खिलाफ दायर याचिकाओं को खारिज कर दिया। साथ ही स्पष्ट किया कि जब तक कोई सरकारी नीति असंवैधानिक या दुर्भावनापूर्ण न हो, तब तक उसे चुनौती नहीं दी जा सकती।
बेसिक शिक्षा विभाग ने बीते माह एक आदेश जारी कर राज्य के हजारों स्कूलों को छात्रों की संख्या के आधार पर नजदीकी उच्च प्राथमिक या कंपोजिट स्कूलों में मर्ज करने का निर्देश दिया था। सरकार का तर्क था कि इससे शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार होगा और संसाधनों का समुचित उपयोग संभव होगा।
इस आदेश के खिलाफ सीतापुर के स्कूल के 51 छात्रों ने 1 जुलाई को याचिका दायर की थी, जबकि एक अन्य याचिका 2 जुलाई को दाखिल हुई थी। याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि यह फैसला ‘मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा अधिकार अधिनियम (RTE Act)’ का उल्लंघन है। इससे छोटे बच्चों को स्कूल तक पहुंचने में कठिनाई होगी, जिससे उनकी शिक्षा बाधित होगी।
जस्टिस पंकज भाटिया की एकल पीठ में 3 और 4 जुलाई को मामले की सुनवाई हुई और 4 जुलाई को फैसला सुरक्षित रख लिया गया था। सोमवार को सुनाया गया फैसला सरकार के पक्ष में गया। कोर्ट ने माना कि सरकार का यह कदम संसाधनों के बेहतर उपयोग और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा सुनिश्चित करने की दिशा में उठाया गया है। यह RTE कानून का उल्लंघन नहीं करता।
उधर, आम आदमी पार्टी के सांसद संजय सिंह ने फैसले पर नाराजगी जताते हुए कहा, “उत्तर प्रदेश के बच्चों ने स्कूल बचाने की गुहार लगाई थी, सरकार ने स्कूल छीना और अब न्यायालय ने उम्मीद। क्या यही है शिक्षा का अधिकार? हम इस लड़ाई को सुप्रीम कोर्ट तक लेकर जाएंगे।”






