वैज्ञानिकों ने माना गंगा जल नष्ट कर सकता है हानिकारक बैक्टीरिया, यूरोपियन मैगजीन में प्रकाशित होगा शोध

TheHoHallaTeam
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अमित मिश्र

लखनऊ,25 मार्च 2025:

हाल ही में संगम तट पर आयोजित कुंभ मेले में, करोड़ों श्रद्धालुओं ने पावन गंगा नदी में स्नान किया, जिसे पारंपरिक रूप से अमृत स्नान के रूप में जाना जाता है। वैज्ञानिक समुदाय में, पद्मश्री पुरस्कार प्राप्त वैज्ञानिक डॉक्टर अजय सोनकर ने इस के वैज्ञानिक महत्व पर प्रकाश डाला है। उन्होंने अपने शोध में गंगा जल के विशिष्ट गुणों पर शोध कर किया है । उनका यह दावा “द हो हल्ला” में प्रकाशित हुआ था। अब इस सन्दर्भ में विस्तृत रिसर्च सामने आया है,
श्रद्धालुओं में व्याप्त एक सामान्य जिज्ञासा यह थी कि गंगा में स्नान को अमृत स्नान क्यों कहा जाता है और इसके जल में क्या विशेष गुण हैं। डॉक्टर सोनकर के वैज्ञानिक अध्ययन ने इस प्रश्न का व्यापक और तार्किक उत्तर प्रदान किया है।

• वैज्ञानिक जांच और भविष्य की दिशा

डॉक्टर अजय सोनकर द्वारा किए गए शोध में यह देखा गया कि गंगा में ऐसे बेक्टीरियोफेज की प्रजातियाँ मौजूद हैं,जो बैक्टीरिया को नष्ट करने वाले सूक्ष्म जीव होते हैं। ये न केवल सामान्य बैक्टीरिया बल्कि ड्रग रेजिस्टेन्ट बैक्टीरिया को भी समाप्त करने में सक्षम हैं। ग्लोबल साइंस कम्युनिटी और यूरोपियन एक्वाकल्चर सोसाइटी ने कुंभ मेले के दौरान लाखों भक्तों के स्नान से गंगा के पानी पर पड़ने वाले प्रभाव का अध्ययन किया। इस शोध से सिद्ध हुआ कि गंगा के प्राकृतिक बेक्टीरियोफेज की सक्रियता से गंगा जल पवित्र और अमृत के समान बन जाता है।

इस खोज के आधार पर, दुनिया भर के वैज्ञानिक अब नदियों के प्रबंधन में गंगा के पानी में पाई जाने वाली इस प्राकृतिक शक्ति को अपनाने की दिशा में काम करने की उम्मीद जता रहे हैं। शोध से यह भी संकेत मिला है कि यदि गंगा को केमिकल और इंडस्ट्रियल पॉल्यूशन से बचाया जाए, तो यह हर प्रकार के पॉल्यूशन से मुक्त रह सकती है।

• वैज्ञानिक सम्मान:

यूरोपियन एक्वाकल्चर सोसाइटी ने डॉक्टर अजय सोनकर के शोध को अपनी यूरोपियन एक्वाकल्चर साइंटफिक मैगजीन ‘एंड जनरल’ में प्रकाशित करने का निर्णय लिया है। साथ ही, उन्हें स्पेन में आयोजित साइंटिफिक सेमिनार में भी आमंत्रित किया गया है, जहाँ दुनिया भर के वैज्ञानिक इस क्रांतिकारी खोज पर चर्चा करेंगे।
इस शोध ने गंगा के जल को अमृत मानने की परंपरा के पीछे छुपे वैज्ञानिक कारणों को उजागर कर दिया है, जिससे नदियों के संरक्षण और शुद्धीकरण में नए आयाम जुड़ सकते हैं।

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