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शरद पूर्णिमा (कोजगर पूर्णमा) की रात: जानें भगवान शिव ने क्यों धारण किया गोपी का रूप

वाराणसी, 16 अक्टूबर 2024:

हिंदू धर्म में शरद पूर्णिमा का विशेष महत्व है, जिसे हर साल अश्विन माह के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को मनाया जाता है। इसे रास पूर्णिमा और कोजागर पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, इस रात भगवान श्रीकृष्ण ने गोपियों के संग वृंदावन में महारास रचाया था, इसलिए इसे रास पूर्णिमा कहा जाता है। वहीं, इसी रात माता लक्ष्मी पृथ्वी पर विचरण करती हैं, जिसे कोजागर पूर्णिमा के रूप में पूजा जाता है।

लेकिन एक अन्य पौराणिक कथा भी शरद पूर्णिमा से जुड़ी है, जिसमें भगवान शिव ने गोपी का रूप धारण किया था। आखिर भगवान शिव जैसे पुरुषत्व के प्रतीक देवता को नारी का रूप धारण करने की आवश्यकता क्यों पड़ी? यह कथा धार्मिक दृष्टिकोण से बेहद रोचक और महत्वपूर्ण है।

शरद पूर्णिमा और भगवान शिव की कथा


पौराणिक मान्यता के अनुसार, शरद पूर्णिमा की रात भगवान श्रीकृष्ण ने ब्रज में गोपियों के साथ महारास किया था। कृष्ण की बांसुरी की मधुर ध्वनि सुनकर गोपियां मंत्रमुग्ध होकर वृंदावन पहुंच गई थीं। यह धुन इतनी मोहक थी कि देवी-देवता भी इसे सुनकर आकर्षित हो जाते थे। भगवान शिव, जिन्हें पौरुष का प्रतीक माना जाता है, भी इस धुन से प्रभावित हो गए और वे महारास देखने के लिए वृंदावन पहुंचे।

जब शिव जी वृंदावन पहुंचे, तो उन्हें द्वारपालों ने रोक दिया और कहा कि यह रासलीला केवल गोपियों के लिए है और पुरुषों का इसमें प्रवेश वर्जित है। इस कारण भगवान शिव को गोपी का रूप धारण करना पड़ा। माता पार्वती और यमुना नदी ने भी भगवान शिव को इसमें मदद की, और इस प्रकार भगवान शिव ने रासलीला का दर्शन किया।

इस घटना के बाद, शिव जी को “गोपीश्वर महादेव” के नाम से जाना गया। वृंदावन में स्थित गोपीश्वर महादेव का मंदिर आज भी इस कथा का प्रतीक है और श्रद्धालुओं के लिए विशेष महत्व रखता है।

धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व


शरद पूर्णिमा के अवसर पर भगवान विष्णु, माता लक्ष्मी और चंद्रमा की पूजा का भी विशेष महत्व है। यह माना जाता है कि इस रात चंद्रमा अपनी 16 कलाओं से पूर्ण होकर अमृतवर्षा करता है। इसी कारण, इस रात को खुले आसमान के नीचे खीर रखी जाती है और अगले दिन सुबह उसे प्रसाद के रूप में ग्रहण किया जाता है, जिसे अत्यंत शुभ और स्वास्थ्य के लिए लाभकारी माना जाता है।

इस रात को मनाने के पीछे न केवल धार्मिक, बल्कि सांस्कृतिक दृष्टिकोण से भी यह पर्व विशेष महत्व रखता है। हिंदू धर्म में इसे समृद्धि, शांति और आध्यात्मिक उन्नति का प्रतीक माना जाता है।

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