
बड़वानी,12 अक्टूबर 2024
भगवान श्रीराम के साथ युद्ध करने वाले लंका के राजा महाबली रावण, भाई कुंभकर्ण और पुत्र मेघनाद ने नर्मदा नदी के तट पर तपस्या की थी। यह स्थान वर्तमान मध्य प्रदेश के बड़वानी जिले में है। दुर्भाग्य से ये तपस्थली नर्मदा नदी के बैकवाटर में डूब गई हैं।
मेघनाद आकाश मार्ग से जा रहा थायह वही क्षेत्र है, जहां रामायणकालीन कई पुरातन धरोहरें हैं। इनमें से कई अब भी नर्मदा के पानी से बाहर हैं, किंतु उपेक्षित हैं। नर्मदा नदी के पौराणिक स्थलों पर शोध कर पुस्तक लिखने वाली लेखिका डॉ. मोहिनी शुक्ला के अनुसार नर्मदा पुराण के रेवाखंड 56 (अ) के अनुसार रावण का पुत्र मेघनाद जब आकाश मार्ग से धवड़ीकुंड (वर्तमान समय में मप्र के बड़वानी जिले के गांव जांगरवा के समीप) से दो शिवलिंग लेकर जा रहा था।
तब रास्ते में उसके हाथ से शिवलिंग छूटकर नर्मदा नदी में गिर गया। इसे नर्मदाजी की कृपा समझकर मेघनाद ने यहीं पर शिव पूजन कर शिवलिंग को स्थापित कर दिया। तभी से इस स्थल का नाम मेघनाद तीर्थ प्रसिद्ध हुआ। यहां श्राद्ध, तर्पण, ब्रह्मभोज का सौ गुना फल मिलने की लोकमान्यता है। नौकानुमा यह पुरातन मंदिर अब पूरी तरह नर्मदा के बैकवाटर में जलमग्न है।
महेश्वर में बनाया था रावण को बंदी
पश्चिम निमाड़ के साहित्यकार एवं इतिहासविद् हरीश दुबे बताते हैं- निमाड़ अंचल में स्थित महेश्वर का अस्तित्व सदियों पुराना है। रामायण व महाभारत कालीन दस्तावेजों में भी इसका उल्लेख मिलता है।