
लखनऊ, 20 मार्च 2025:
हर साल 20 मार्च को विश्व गौरैया दिवस मनाया जाता है। यह दिन गौरैया के महत्व को समझने और इसके संरक्षण के प्रति जागरूकता बढ़ाने के लिए समर्पित है। एक नन्हा परिंदा जो कभी हमारे घरों का हिस्सा होती थी, जिसकी चहचहाहट से दिन की शुरुआत होती थी। वो नन्हा परिंदा तब इतना अपना लगता था कि वो मुंडेर पर बैठे, छत पर फुदके या फिर आंगन के पेड़ों में अपना घरौंदा बनाए, उसे कभी भगाने का मन ही नहीं किया…. गौरैया…. लेकिन आज की इस भाग-दौड़ भरी जिंदगी में वो नन्हा परिंदा कहीं अदृश्य सा हो गया। आलम यह है कि हमें उसे बचाने के लिए विश्व गौरैया दिवस मनाना पड़ रहा है।
लखनऊ के खुर्शेदाबाद में एक घर बना मिसाल
आज विश्व गौरैया दिवस के मौके पर द हो हल्ला पहुंचा लखनऊ के खुर्शेदबाग के उस घर के बगीचे में, जहां आज भी सैकड़ों पक्षी अपना घरौंदा बनाए हैं…. आईपीएस डॉ. अरविंद चतुर्वेदी के घर। जहां उन्होंने अपने घर में पेड़-पौधे लगाकर सुंदर बगीचा बनाया है जो सालों पुराना है। आज विकास की आंधी में जहां हम सब आधुनिक तकनीक की ओर भाग रहे हैं, वहीं अरविंद चतुर्वेदी और उनकी धर्मपत्नी रागिनी चतुर्वेदी मिलकर नन्हें परिंदों के संरक्षण के लिए हर रोज दाना-पानी रखते हैं। उनकी यह पहल न सिर्फ गौरैया संरक्षण में योगदान दे रही है, बल्कि पर्यावरण को भी हरा-भरा और खुशहाल रखने में मदद कर रही है।
चीन का गौरैया विनाश अभियान और उसके परिणाम
गौरैया के महत्व का एक ऐतिहासिक उदाहरण चीन में देखने को मिलता है। 1950 के दशक में, कम्युनिस्ट पार्टी के नेता और चीन के तत्कालीन लीडर माओ जेडोंग ने “4 पेस्ट्स कैंपेन” चलाया। माओ का मानना था कि मक्खी, मच्छर, चूहों और गौरैया ने देश के पैसों का बड़ा नुकसान किया है। उन्हें विश्वास था कि गौरैया खेतों का आधा अनाज चुग जाती है।
इस अभियान में चीन के करोड़ों लोग शामिल हुए और लाखों-करोड़ों गौरैया मार दी गईं। युन्नान के 16 साल के लड़के यंग-सेह-मुन को “नेशनल हीरो” का खिताब दिया गया क्योंकि उसने अकेले 20 हजार गौरैया मारी थीं। 1958 से अगले दो ही सालों के भीतर चीन गौरैया-विहीन देश बन गया।
लेकिन इसका परिणाम विपरीत हुआ। खेतों पर टिड्डियों का हमला होने लगा। झुंड की झुंड टिड्डियां अनाज चट करने लगीं और अनाज बचाने की सारी कोशिशें विफल होती चली गईं। तब माओ को पता चला कि गौरैया जितना अनाज खाती नहीं थी, उससे कहीं ज्यादा अनाज उसके कारण बचता था, क्योंकि वे मुख्य रूप से टिड्डियों का शिकार करती थीं।
परिणामस्वरूप, साठ के दशक में चीन भयंकर अकाल की चपेट में आ गया, जिसे “ग्रेट चाइनीज फेमिन” के नाम से जाना जाता है। लगभग साढ़े 3 करोड़ लोगों ने भूख से दम तोड़ दिया। इससे उबरने के लिए चीन को रूस से लाखों गौरैया खरीदनी पड़ीं।
संरक्षण का महत्व
यह दुखद इतिहास हमें सिखाता है कि प्रकृति के छोटे से छोटे घटक भी पारिस्थितिकी तंत्र के संतुलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। गौरैया जैसे छोटे पक्षी कीटों का शिकार करके फसलों की रक्षा करते हैं और पर्यावरण संतुलन बनाए रखने में मदद करते हैं।
आज हमें अपने घरों और आसपास के वातावरण में गौरैया जैसे पक्षियों के लिए अनुकूल परिस्थितियां बनाने की आवश्यकता है। पेड़-पौधे लगाना, पक्षियों के लिए दाना-पानी की व्यवस्था करना और उनके प्राकृतिक आवास को संरक्षित करना हमारी जिम्मेदारी है।
आईए, इस विश्व गौरैया दिवस पर हम सभी मिलकर अरविंद और रागिनी चतुर्वेदी जैसे लोगों से प्रेरणा लें और अपने आसपास के पर्यावरण को गौरैया और अन्य पक्षियों के लिए सुरक्षित बनाने का संकल्प लें।