Jammu & KashmirPolitics

“370 इतिहास ही रहेगा, जम्मू-कश्मीर विधानसभा में लड़ाई क्यों?”

कश्मीर,7 नवंबर 2024

जम्मू-कश्मीर विधानसभा में अनुच्छेद-370 को लेकर दूसरे दिन भी हंगामा जारी रहा। बुधवार को बीजेपी के विरोध के बावजूद, डिप्टी सीएम सुरिंदर कुमार चौधरी ने अनुच्छेद-370 को दोबारा लागू करने का प्रस्ताव पेश किया, जिसे विधानसभा ने पास कर दिया। यह प्रस्ताव नेशनल कॉन्फ्रेंस की रणनीति का हिस्सा था, जिसने प्रस्तावक के चयन में चालाकी से संकेतों का इस्तेमाल किया। इसके बाद विधायक खुर्शीद अहमद शेख बैनर लेकर विधानसभा पहुंचे, जिससे उच्च स्तर का ड्रामा हुआ। अब सवाल उठ रहे हैं कि क्या 370 को दोबारा लागू किया जा सकता है और यदि नहीं, तो नई सरकार ने यह प्रस्ताव क्यों पारित किया?

बीजेपी का दावा है कि जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 अब इतिहास बन चुका है और इसे दोबारा लागू नहीं किया जा सकता। यह दावा सही है, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की बेंच ने केंद्र सरकार के फैसले को वैध ठहराया था। 11 दिसंबर 2023 को कोर्ट ने अनुच्छेद 370 और 35A को हटाने को मंजूरी दी। कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि विधानसभा में प्रस्ताव पास होने के बावजूद, अनुच्छेद को दोबारा लागू करने के लिए केंद्र सरकार और राष्ट्रपति की सहमति की आवश्यकता होगी, जो अब राजनीतिक कारणों से संभव नहीं है।

सुप्रीम कोर्ट ने अनुच्छेद 370 और जम्मू-कश्मीर के संविधान को खत्म करने पर अपनी मुहर लगा दी है। अनुच्छेद 370 अक्टूबर 1949 में अस्तित्व में आया था, जिसने जम्मू-कश्मीर को आंतरिक स्वायत्तता दी थी। 5 अगस्त 2019 को केंद्र ने राष्ट्रपति के अधिकार से इसे समाप्त किया। कोर्ट ने माना कि राष्ट्रपति के पास इसे संशोधित करने की एकतरफा शक्ति थी और अब जम्मू-कश्मीर का संविधान निष्क्रिय हो चुका है। कोर्ट ने जम्मू-कश्मीर की संप्रभुता के दावे को भी खारिज कर दिया, साथ ही दो निशान और दो संविधान का अस्तित्व समाप्त कर दिया।

2019 में बीजेपी सरकार के फैसले के बाद जम्मू-कश्मीर के क्षेत्रीय दलों, जैसे नेशनल कॉन्फ्रेंस, पीडीपी और कांग्रेस ने विरोध जताया। कांग्रेस ने कोर्ट के फैसले पर असहमति व्यक्त की और पी. चिदंबरम ने इसे गलत तरीके से निरस्त किया जाने की बात कही। हालांकि, कांग्रेस ने कभी यह वादा नहीं किया कि वह अनुच्छेद 370 को दोबारा लागू करेगी, और इसका विरोध सिर्फ बीजेपी के खिलाफ प्रतीकात्मक लड़ाई तक सीमित रहा। वहीं, नेशनल कॉन्फ्रेंस और पीडीपी के लिए यह विरोध कश्मीर में अपने जनाधार को बनाए रखने का एक राजनीतिक दांव है।

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