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महाकुंभ : अंग्रेजी हुकूमत ने श्रद्धालुओं से वसूला था एंट्री टैक्स… जाने क्यों

महाकुंभ नगर, 9 जनवरी 2025:

उत्तर प्रदेश का प्रयागराज जहां अद्भुत,भव्य और दिव्य महाकुंभ सज रहा है। इसमें 40 करोड़ से अधिक श्रद्धालु आस्था की डुबकी लगाएंगे। श्रद्धालुओं के लिए तमाम इंतजाम किए जा रहे हैं लेकिन 200 साल पहले आयोजित महाकुंभ में आने वाले लोगों से लगान वसूला जाता था।

अकबर की टैक्स वसूलने की कोशिश नहीं हुई थी सफल

मुगल और अंग्रेजी शासन काल में श्रद्धालुओं को संगम में डुबकी लगाने के लिए टैक्स देना पड़ता है। मुगल काल में अकबर ने कुंभ में टैक्स लेना शुरू किया लेकिन विरोध के बाद ये आदेश मुगल बादशाह ने वापस ले लिया। फिर आए ब्रिटिशर्स जिन्होंने कुंभ में टैक्स की शुरूआत की। तब भी तीर्थ यात्रियों, संतों और तीर्थ पुरोहितों ने कुंभ में टैक्स का विरोध किया लेकिन अड़ियल अंग्रेजों ने एक ना सुनी और कुंभ में कर वसूलते रहे। अंग्रेजों ने 1810 के रेग्युलेटिंग एक्ट के तहत माघ मेले में टैक्स वसूली शुरू की थी।

अंग्रेजों को लगता था हिंदुओं की एकजुटता से डर

इस टैक्स वसूली के पीछे अंग्रेजों का सबसे बड़ा उद्देश्य था कि कहीं कुंभ की एकजुटता से उनके खिलाफ क्रांति बीज ना पनप जाए। उन्हें 1857 का विद्रोह जैसे हालात का सामना करना पड़े। मुगलों के पतन के बाद अंग्रेजों के लिए कुंभ कौतूहल से कम नहीं था। हालांकि 1857 की क्रांति से डरे अंग्रेज इस महापर्व में आने वाली लाखों की भीड़ की निगरानी करते थे। यहां तक की पुरोहित पंडों और कल्पवास में रहने वाले साधु संतों से हलफनामा लिया गया कि उनके तंबुओं में कोई ऐसा व्यक्ति ना रूके जो पहले उनके यहां कभी न रुका हो। हालंकि इस डर के साथ ही अंग्रेजों को समझ आया कि टैक्स सिक्योरिटी के साथ साथ रेवेन्यु जनरेशन का भी अच्छा जरिया है।

मुगलों के बाद अंग्रेजों ने संभाली महाकुंभ की कमान

महाकुंभ की आधिकारिक कमान अंग्रेजों ने साल 1870 से अपने हाथों में ली थी। इसके बाद उन्होंने 6 महाकुंभ कराए… 1882, 1894, 1906, 1918 और 1930 तक अंग्रेजों ने टैक्स के साथ कुंभ आयोजन किया। एसके दुबे की किताब ‘कुंभ सिटी प्रयाग’ के मुताबिक 1882 में अंग्रेज कुंभ में आने वाले हर यात्री से सवा रुपए का लगान वसूलते थे। उस दौर में जब एक रुपये में पूरे महीने के राशन का इंतजाम हो जाता। इस कारण साल 1822 के कुंभ मेले में सन्नाटा पसरा रहा। उस कुंभ में अंग्रेजी हुकूमत ने मेले के आयोजन में 20,228 रुपए खर्च किए जबकि लगान से 49,840 रुपये कमाए। साल 1906 में सरकार की कमाई 62 हजार रुपए के ऊपर हुई। 1796 से लेकर 1808 तक हुए कुंभ आयोजनों में 2 से 2.5 मिलियन तक श्रृद्धालु पहुंचे थे। इस बार के महाकुंभ में 40 करोड़ से अधिक श्रद्धालुओं के त्रिवेणी में डुबकी लगाने का अनुमान है।

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