
नई दिल्ली, 2 मई 2025
मोदी सरकार के जातीय जनगणना के फैसले ने देश भर में राजनीतिक हलचल मचा दी है। विपक्षी दलों द्वारा वर्षों से जातीय डेटा को जनगणना में शामिल करने की मांग के बाद सरकार ने यह कदम उठाया। हालांकि, सूत्रों के मुताबिक, बीजेपी ने शुरू से ही जातीय जनगणना का समर्थन किया था, जैसा कि सुषमा स्वराज के 2010 के पत्र से स्पष्ट होता है।
इस पत्र में, जो 6 अगस्त 2010 को तत्कालीन वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी को लिखा गया था, सुषमा स्वराज ने कहा था कि बीजेपी जाति आधारित जनगणना और राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (NPR) में जाति का समावेश करने के पक्ष में है। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया था कि जातीय डेटा को इस तरीके से जनगणना में शामिल किया जाए कि उसकी अखंडता पर कोई असर न पड़े।
बीजेपी का यह रुख स्पष्ट करता है कि पार्टी शुरुआत से ही जातीय जनगणना के पक्ष में रही है, जबकि उस समय कांग्रेस नेतृत्व वाली यूपीए सरकार में इस मुद्दे पर मतभेद थे। इस वजह से, मनमोहन सिंह सरकार ने जाति आधारित जनगणना की बजाय सामाजिक-आर्थिक जाति जनगणना (SECC) कराने का निर्णय लिया था, जो जनगणना के रूप में नहीं बल्कि एक अलग प्रक्रिया के तहत की गई थी।
भारत में आखिरी बार जाति आधारित जनगणना 1931 में ब्रिटिश शासन के दौरान की गई थी, और इसके बाद से स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद जातीय डेटा जनगणना में शामिल नहीं किया गया। अब मोदी सरकार ने इसे पुनः लागू करने का निर्णय लिया है, जिससे यह मुद्दा आगामी वर्षों में एक महत्वपूर्ण राजनीतिक बहस का विषय बनेगा।