लखनऊ, 25 अगस्त
कहते हैं, राजनीति में न कोई मित्र होता है , न ही शत्रु। आज के शत्रु कल राजनीति की बिसात पर एक दूसरे के गले में बाहें डाले नज़र आ सकते हैं।
ऐसा ही कुछ होने के संकेत है आने वाले समय में।
बसपा मुखिया मायावती और सपा प्रमुख अखिलेश यादव फिर साथ आने वाले हैं। अगले विधानसभा चुनाव में दोनों पार्टियां मिलकर चुनाव लड़ सकती हैं हालांकि अभी तो समाजवादी पार्टी का कांग्रेस से गठबंधन है।
वैसे तो गाजीपुर के सांसद अफजाल अंसारी ने आगामी चुनावों में सपा और बसपा के एक बार फिर साथ आने की भविष्यवाणी लोकसभा चुनाव परिणाम के दौरान ही कर दी थी। वहीं, 2027 के यूपी चुनावों को लेकर समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव राम अचल राजभर ने एक बड़ा दावा किया है। उन्होने यह इशारा किया कि विधानसभा चुनावों में सपा और बसपा एक साथ चुनाव लड़ सकती हैं। उन्होने आश्वस्त लहजे में कहा कि 2027 के चुनावों में सामाजिक न्याय के मुद्दे पर अखिलेश यादव और मायावती एक मंच साझा कर सकते हैं। उन्होने कहा कि देश में इस समय सामाजिक न्याय का मुद्दा ज्वलंत है और जिस तरीके से सत्ताधारी दल सामाजिक न्याय का हनन कर रहा है उसे देखते हुए सभी राजनीतिक दलों को उनके खिलाफ एक हो जाना चाहिए।
सपा-बसपा में पक रही सियासी खिचड़ी
भारतीय जनता पार्टी के विधायक राजेश चौधरी द्वारा बसपा सुप्रीमो मायावती पर प्रतिकूल टिप्पणी करने के बाद समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव मायावती के पक्ष में खुलकर आ गए हैं। अखिलेश ने कहा कि एक भूतपूर्व महिला मुख्यमंत्री के प्रति कहे गए अभद्र शब्द दर्शाते हैं कि भाजपाइयों के मन में महिलाओं और खासतौर से वंचित-शोषित समाज से आनेवालों के प्रति कितनी कटुता भरी है। मायावती ने अखिलेश के बयान पर उनका आभार जताते हुए कहा है कि मेरे ईमानदार होने के बारे में सच्चाई को माना है। बसपा सुप्रीमो ने शनिवार को सोशल मीडिया एक्स पर कहा है कि सपा मुखिया ने मथुरा जिले के एक भाजपा विधायक को उनके गलत आरोपों का जवाब देकर उनके ईमानदार होने के बारे में सच्चाई को माना है, उसके लिए पार्टी आभारी है।
अपने ही बुने जाल में फंसे अखिलेश-मायावती
दूसरी ओर एससी एसटी रिजर्वेशन में क्रीमी लेयर को लेकर आए सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद देश की सियासत गरमाई हुई है। सपा-बसपा समेत कई विपक्षी दलों ने इसका विरोध किया और दलित संगठनों द्वारा बुलाए गए भारत बंद का भी सड़क पर उतर समर्थन किया है। लेकिन अब वो अपनी इस रणनीति में फंसते हुए दिखाई दे रहे हैं। यह दावा बीजेपी के सहयोगी दल के नेता ने किया है। जनवादी सोशलिस्ट पार्टी के अध्यक्ष डॉ संजय चौहान ने दावा किया है कि भारत बंद का समर्थन करने के बाद दोनों दलों सपा और बसपा का सामंती चेहरा लोगों के सामने आया गया है। ये दल उन लोगों के समर्थन में सड़क पर उतरे जो आरक्षण का लाभ उठाकर ब्यूरोक्रेसी और कॉर्पोरेट बन चुके हैं। उन्होंने कहा कि 2027 के चुनाव में दोनों को इसका खामियाजा उठाना पड़ेगा।