सूर्योपासना का पर्व छठ: नहाय-खाय से उषा अर्घ्य तक, चार दिवसीय अनुष्ठान

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अंशुल मौर्य

वाराणसी, 29 अक्टूबर 2024:

 हिंदू धर्म में लोक आस्था से जुड़ा महापर्व छठ बिहार के लोगों के दिलों में धड़कन की तरह बसता है। बिहार के अलावा झारखंड और उत्तरप्रदेश में छठ पर्व विशेष रूप से मनाया जाता है। वैसे इन राज्यों के लोग चाहे जिस भी शहर या विदेश में हैं, वहां भी छठ पर्व मनाया जाता है। अब तो दिल्ली, मुबई जैसे बड़े शहरों में भी बिहार और यूपी की तरह पूरे धूम-धाम से इस पर्व को मनाया जाने लगा है। यानी छठ पर्व की धूम देश ही नहीं, बल्कि विदेशों तक पहुंच चुकी है। चार दिवसीय लोक आस्था का यह महापर्व मंगलवार से नहाय-खाय के साथ शुरू हो रहा है। बिहार, झारखंड, यूपी में छठ की छठा ही निराली होती है। तालाबों और नदियों के घाट दुल्हन की तरह सजाए जाते हैं और सुबह-शाम यानी सूर्योदय और सूर्यास्त के समय का नजारा ही निराला होता है। छठ पूजा करीब चार दिनों तक चलती है। इस दिन महिलाएं अपने संतान की लंबी आयु और अच्छे स्वास्थ्य के लिए करीब 36 घंटे निर्जला व्रत रखती हैं।

नहाय-खाए के साथ आरंभ होता है छठ पर्व

धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक, जो भी सच्चे दिल से और नियम-निष्ठा के साथ छठ का व्रत करता है उसे एक स्वस्थ और तेजवान संतान की प्राप्ति होती है। दरअसल, छठ का व्रत मुख्य रूप से संतान की लंबी आयु, पारिवारिक सुख-समृद्धि, अच्छी सेहत और

मनोवांछित फल की प्राप्ति के लिए किया जाता है। छठ व्रत कठिन व्रतों में से एक माना गया है। यह पर्व नहाय-खाय के साथ आरंभ होता है और व्रत का पारण सूर्य को अर्घ्य देने के साथ चौथे दिन समाप्त होता है।

छठ पूजा 2024 कब है

हर साल छठ पूजा दिवाली से 6 दिन बाद की जाती है। पंचांग के अनुसार, इस वर्ष कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि 7 नवंबर की देर रात 12 बजकर 41 मिनट पर शुरू होगी और इसका समापन 8 नवंबर की देर रात 12 बजकर 34 मिनट पर हो जाएगा। ऐसे में 7 नवंबर, गुरुवार के दिन ही संध्याकाल का अर्घ्य दिया जाएगा और सुबह का अर्घ्य अगले दिन 8 नवंबर को दिया जाना है।

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छठ पूजा का पहला दिन, 5 नवंबर 2024- नहाय खाय (मंगलवार)

छठ पूजा का दूसरा दिन, 6 नवंबर 2024- खरना (बुधवार)

छठ पूजा का तीसरा दिन, 7 नवंबर 2024- संध्या अर्घ्य (गुरुवार)

छठ पूजा का चौथा दिन, 8 नवंबर 2024- उषा अर्घ्य (शुक्रवार)

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क्या होता है नहाय-खाय व खरना

दिन 1: नहाय-खाय: नहाय-खाय से छठ पूजा की शुरुआत होती है। नहाय खाय जैसा कि इसके नाम से ही स्पष्ट होता है कि इस दिन स्नान करके भोजन करने का विधान है। नहाय खाय के दिन व्रत करने वाली महिलाएं नदी या तालाब में स्नान करती हैं। यहि नदी में नहाना संभव न हो तो घर पर भी नहा सकते हैं। इसके बाद व्रती महिलाएं भात, चना दाल और लौकी का प्रसाद बनाकर ग्रहण करती हैं।

दिन 2: खरना: छठ पूजा के दूसरे दिन को लोहंडा या खरना कहा जाता है। कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को खरना का प्रसाद बनाया जाता है। इस दिन माताएं दिनभर व्रत रखती हैं और पूजा के बाद खरना का प्रसाद खाकर 36 घंटे के निर्जला व्रत का आरंभ करती है। इस दिन मिट्टी के चूल्हे में आम की लकड़ी से आग जलाकर प्रसाद बनया जाता है।

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दिन 3: संध्या अर्घ्य: छठ पूजा के तीसरे दिन शाम के समय नदी या तालाब में खड़े होकर अस्त होते सूर्य देव को अर्घ्य दिया जाता है। इसके साथ ही बांस के सूप में फल, गन्ना, चावल के लड्डू, ठेकुआ सहित अन्य सामग्री रखकर पानी में खड़े होकर पूजा की जाती है।

दिन 4: उषा अर्घ्य और पारण: छठ पूजा के चौथे और आखिरी दिन उगते हुए सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। इस दिन व्रती अपने व्रत का पारण करते हैं। साथ ही अपनी संतान की लंबी उम्र और अच्छे भविष्य की कामना करते हैं। प्रसाद बांटकर पूजा का समापन होता है।

कब से हुई छठ महापर्व की शुरुआत?

पौराणिक कथा के अनुसार, जब भगवान राम, रावण का वध करके अयोध्या वापस लौटे तो वशिष्ठ मुनि ने कहा था कि आपको ब्रह्महत्या लग चुकी है। इससे छुटकारा पाने के लिए आपको माता सीता और लक्ष्मण के साथ गंगा किनारे स्थित मुद्गल ऋषि के आश्रम जाना होगा और भगवान सूर्य की अराधना करनी होगी। माता सीता ने अपने पति की दीर्घायु के लिए बिहार के मुंगेर जिला स्थित मुद्गल ऋषि आश्रम के समीप गंगा किनारे सबसे पहले छठ पूजा कर सूर्य भगवान की उपासना की थी। जहां अभी भी माता सीता के पैरों के निशान मौजूद हैं। तभी से छठ महापर्व की शुरुआत हुई।

कर्ण ने भी किया था सूर्य उपासना

मान्यता के मुताबिक, एक कथा प्रचलित है कि छठ पर्व की शुरुआत महाभारत काल के दौरान हुई थी। इस पर्व को सबसे पहले सूर्यपुत्र कर्ण ने सूर्य की पूजा करके शुरू की थी। कहा जाता है कि कर्ण भगवान सूर्य के परम भक्त थे। वे रोज घंटों पानी में खड़े होकर सूर्यदेव को अर्घ्य देते थे। सूर्य की कृपा से ही वह महान योद्धा बने। वहीं से पानी में खड़े होकर अर्घ्य देने की परंपरा शुरू हुई।

पांडवों ने भी किया था छठ

महाभारत काल से जुड़ा हुआ एक और कथा प्रचलित है। जिसमें पांडवों और द्रौपदी ने अपना खोया हुआ मान सम्मान, धन दौलत, राजपाट को वापस पाने के लिए छठ किया था। इसके बाद सभी हस्तिनापुर को लौटे। इस व्रत के जरिए पांडवों को राजपाट भी वापस मिला।

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