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कवि कुछ कह रहा है…

भारत के सर्वोच्च साहित्यिक पुरस्कार ज्ञानपीठ से सम्मानित कवि केदारनाथ सिंह आधुनिक हिंदी कविता में बिम्ब के कवि के रूप में जाने जाते हैं। उत्तर प्रदेश के बलिया जनपद में 7 जुलाई, 1934 को पैदा हुए केदारनाथ सिंह पेशे से एक शिक्षक थे। उनके बारे में उनसे पढ़े हुए विद्यार्थी बताते हैं कि वे जितने अच्छे कवि हैं, कक्षा में उतने ही श्रेष्ठ शिक्षक भी रहे। बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से पढ़ाई करने के बाद कुछ समय उत्तर प्रदेश के कुशीनगर में ही अध्यापन कार्य किया। अंत में वे जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में बतौर आचार्य और अध्यक्ष के रूप में कार्यरत रहे और सेवानिवृत्त हुए।

आइए पढ़ते हैं केदार जी एक मशहूर कविता …

तुम आईं

जैसे छीमियों में धीरे-धीरे

आता है रस

जैसे चलते-चलते एड़ी में

काँटा जाए धँस

तुम दिखी

जैसे कोई बच्चा

सुन रहा हो कहानी

तुम हँसी

जैसे तट पर बजता हो पानी

तुम हिलीं

जैसे हिलती है पत्ती

जैसे लालटेन के शीशे में

काँपती हो बत्ती!

तुमने छुआ

जैसे धूप में धीरे-धीरे

उड़ता है भुआ

और अंत में

जैसे हवा पकाती है गेहूँ के खेतों को

तुमने मुझे पकाया

और इस तरह

जैसे दाने अलगाए जाते हैं भूसे से

तुमने मुझे ख़ुद से अलगाया।

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