अंशुल मौर्या
वाराणसी, 13 सितंबर,2024
कानून व्यवस्था और विधि व्यवस्था लागू करने में प्रशासनिक और पुलिस अधिकारियों के बीच बेहतर तालमेल के उद्देश्य से उत्तर प्रदेश में लागू हुई
पुलिस कमिश्नरेट व्यवस्था लचर पुलिस पैरवी के कारण वाराणसी में फेल नज़र आ रही है।
कमिश्नर सिस्टम में पुलिस अधिकारियों के पास अधिक शक्तियां होती हैं। अधिकारियों को गिरफ्तारी करने और कानून व्यवस्था लागू करने के लिए प्रशासनिक अधिकारियों पर निर्भर नहीं रहना पड़ता है। पुलिस गुंडा एक्ट गैंगस्टर एक्ट और रासुका तक लगा सकती है।
वाराणसी कमिश्नरेट पुलिस की लचर पैरवी से वर्दी की आड़ में लुटेरों का गैंग चलाने वाला दारोगा हो या महामना की बगिया में आईटी छात्रा से गैंगरेप के दरिंदे। ये सब व्यवस्था को धता बताते हुए आसानी से सलाखों से बाहर निकल पड़े और कमिश्नरेट की भारी भरकम पुलिस टीम देखती रही।
लुटेरों का गैंग चलाने वाले एक दरोगा सूर्य प्रकाश पांडे की जमानत से आला अधिकारी बेखबर थे। जब पता चला तो अधीनस्थों पर तेवर दिखाए। समय से उच्चाधिकारियों को अवगत नहीं कराने पर पुलिस आयुक्त ने नाराजगी जताई है। एसीपी को हटाने के साथ ही थाना प्रभारी को लाइन में भेजते हुए तत्कालीन एसीपी कोतवाली और रामनगर थाना प्रभारी के खिलाफ विभागीय जांच भी बैठाई गई है।
पुलिस आयुक्त ने समीक्षा के बाद फिलहाल ACP कोतवाली अमित श्रीवास्तव को हटाकर एसीपी सुरक्षा बना दिया है और इंस्पेक्टर रामनगर अनिल कुमार शर्मा को लाइन हाजिर कर दिया है।
दरसल, वाराणसी में वर्दी की आड़ में एक दरोगा सूर्य प्रकाश पांडे लुटेरों का गैंग चला रहा था। दरोगा ने चार शातिर युवकों के साथ नकली ‘स्पेशल क्राइम ब्रांच’ बनाई और हाईवे पर लूट करने लगा। दोस्त रेकी करते थे फिर दरोगा साथियों के साथ छापेमारी करता। इसके बाद जब्त माल को आपस में बांट लेते थे। मामले का खुलासा होने के बाद दारोगा के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर उसे जेल भेज दिया गया। लेकिन लूटकांड में आरोपी दरोगा के खिलाफ बर्खास्तगी समेत कठोर कार्रवाई का अधिकारियों का दावा हवा हवाई हो गया। 42.50 लाख रुपये की लूट साबित होने के बाद जांच करने वालों की भूमिका भी सवालों के घेरे में है। क्योंकि लुटेरों के गैंग का सरगना दारोगा अभियोजन की लचर पैरवी और पुलिस के अधूरे साक्ष्य के वजह से सलाखों के बाहर बड़ी आसानी से आ गया।
जबकि, पुलिस कमिश्नरी सिस्टम में एडीजी रैंक का अधिकारी पुलिस आयुक्त यानी पुलिस कमिश्नर होता है। यह जिले की कमिश्नरेट का सर्वोच्च पद होता है। इसके बाद आईजी रैंक का अधिकारी संयुक्त पुलिस आयुक्त होता है। डीआईजी रैंक के अफसर अपर पुलिस आयुक्त बनाए जाते हैं। उनकी तैनाती क्राइम और लॉ एंड ऑर्डर के लिहाज से अलग-अलग होती है। पुलिस कमिश्नरेट वाले जिलोंं को अलग-अलग जोन में बांट दिया जाता है। फिर हर एक जोन में एसपी रैंक का अधिकारी पुलिस उपायुक्त (डीसीपी) नियुक्त किया जाता है। इतनी भारी भरकम टीम न तो अपराध पर नियंत्रण कर पा रहे, न ही अपराधियों को सलाखों के पीछे रख पा रहे हैं।