वाराणसी, 27 अगस्त
जन्म के ढाई घंटे बाद लड्डू गोपाल ने बाबा विश्वनाथ के मंगला स्वरूप के दर्शन किए( बॉक्स)
श्री काशी विश्वनाथ धाम में पहली बार जन्माष्टमी महोत्सव का भव्य आयोजन किया गया। मंदिर परिसर ‘भए प्रगट गोपाला… जय कन्हैयालाल’ के जयघोष से गूंज उठा। इस पावन अवसर ने पूरे धाम में भक्ति और उल्लास का माहौल बना दिया।
भाद्रपद की अंधेरी रात में ठीक 12 बजे, जैसे ही भगवान श्रीकृष्ण का जन्म हुआ, मंदिर में खुशी की लहर दौड़ गई। मठ-मंदिर और घर-आंगन में उत्सव की खुशबू फैल गई। शैव और वैष्णव भक्तों ने अपने प्रिय भगवान कृष्ण के प्रकट होने पर भक्ति में डूबकर शंखनाद, घंट-घड़ियाल और मंत्रों के साथ बधाई गीत और सोहर गाए।
नन्हे कान्हा की बलइयां ली गईं, मुकुट श्रृंगार कर भगवान का रूप संवारा गया। लड्डू गोपाल को झूले में झुलाया गया और माखन-मिश्री का भोग लगाया गया। “हाथी घोड़ा पालकी… जय कन्हैयालाल की” के जयघोष से पूरा मंदिर परिसर गूंज उठा। जन्म के इस पावन अवसर पर इंद्र देव ने भी बरखा की बूंदों के रूप में साक्षी बनकर इस महोत्सव को धन्य कर दिया।
वसुदेव सुतं देव कंस चाणूर मर्दनम, देवकी परमानंदं कृष्णं वन्दे जगद्गुरुम्…
इन मंत्रों के साथ ही बाबा विश्वनाथ के धाम में पहली बार लड्डू गोपाल का जन्मोत्सव धूमधाम से मनाया गया। जन्म के ढाई घंटे बाद लड्डू गोपाल ने बाबा विश्वनाथ के मंगला स्वरूप के दर्शन भी किए। पहली बार लड्डू गोपाल और बाबा विश्वनाथ के एक साथ दर्शन का सौभाग्य देश और दुनिया भर के सनातन धर्मियों ने ऑनलाइन प्राप्त किया।
श्री काशी विश्वनाथ मंदिर के सीईओ विश्व भूषण मिश्र ने बताया कि पहली बार मंदिर के गर्भगृह में भगवान लड्डू गोपाल बाल रूप में पधारे हैं। शास्त्रों के अनुसार, जब भगवान कृष्ण का जन्म हुआ था, तब उनका बाल रूप देखने के लिए शिवजी स्वयं कैलाश से आए थे। हालांकि, माता यशोदा ने शिवजी से विनती की थी कि आप कन्हैया को सीधे न देखें, बल्कि पानी में परछाई के रूप में दर्शन करें, ताकि बच्चा आपके भयंकर रूप से डर न जाए। इसके बाद भगवान शिव ने बाल कृष्ण का दर्शन किया।