वाराणसी, 18 सितंबर:
अंशुल मौर्य,
गंगा आदिकाल से ही भारत की आस्था और श्रद्धा का केंद्र रही हैं, जो दिव्य मंगलमयी कामना की नदी के रूप में जानी जाती हैं। मातृ रूप में प्रतिष्ठित मां गंगा ने अपने तटवर्ती क्षेत्रों को पवित्र किया है, लेकिन आज यही मोक्षदायिनी गंगा अपने रौद्र रूप में पुरोहितों और यजमानों की अग्नि परीक्षा ले रही हैं।
काशी के सभी घाट जलमग्न हो चुके हैं, और पुरोहितों को अपनी पूजा की चौकियों को घाट से हटाकर सड़कों पर रखना पड़ा है। पितृ पक्ष के दौरान होने वाले नियमित अनुष्ठान अब घाटों के बजाय सड़कों पर किए जा रहे हैं, क्योंकि गंगा के जलस्तर में लगातार वृद्धि हो रही है। इस स्थिति के कारण कई लोगों ने अपनी पितृ पक्ष की यात्राएं रद्द कर दी हैं, जिससे पुरोहितों की आजीविका पर भी असर पड़ा है।
गरुड़ पुराण के अनुसार, पितृ पक्ष के दौरान तर्पण और पिंडदान करने से पूर्वजों को मोक्ष की प्राप्ति होती है और प्रेत योनि से मुक्ति मिलती है। आज 18 सितंबर को शिववास योग में पितृ पक्ष की प्रतिपदा तिथि है, और पहला श्राद्ध भी किया गया है । हालांकि, गंगा के बढ़ते जलस्तर के कारण तर्पण करने में लोगों को काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है।
स्थानीय प्रशासन की लापरवाही से भी स्थिति और बिगड़ रही है। गंगा में बाढ़ के चलते घाटों पर पानी का तेज बहाव है, और सीढ़ियां डूब चुकी हैं। तर्पण और श्राद्ध कर्म के लिए घाटों पर जगह की कमी हो गई है, जबकि सुरक्षा के कोई उपाय नहीं किए गए हैं। इस स्थिति को देखते हुए घाटों पर बैरिकेडिंग की आवश्यकता महसूस की जा रही है।
घाटों पर तर्पण कराने वाले पुरोहितों का कहना है कि काशी मोक्ष नगरी है, जहां स्थानीय लोग और बाहरी श्रद्धालु भारी संख्या में तर्पण और पिंडदान करने आते हैं। विशेषकर भैसासुरघाट, राजघाट, और प्रहलादघाट पर अधिक भीड़ होती है, जबकि अस्सी घाट और दशाश्वमेध घाट जैसे प्रमुख घाटों पर स्थानीय लोग अधिक पहुंचते हैं।
काशी के तीर्थ पुरोहित समाज ने नगर निगम से सभी घाटों पर कर्मचारियों की तैनाती और जिला प्रशासन से सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम करने की मांग की है ताकि श्राद्ध कर्म बिना किसी बाधा के संपन्न हो सके।