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राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने मदरसों में दी जा रही शिक्षा पर उठाया सवाल

नयी दिल्ली, 11 सितंबर,2024

राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (NCPCR) ने मदरसो में मिलने वाली शिक्षा पर गंभीर सवाल उठाए हैं।

सुप्रीम कोर्ट में दाखिल लिखित दलीलों में आयोग ने कहा है कि मदरसों में बच्चों को औपचारिक, क्वालिटी एजुकेशन नही मिल पा रही है। शिक्षा के लिए ज़रूरी माहौल और सुविधाएं देने में असमर्थ मदरसे, बच्चों  को उनकी अच्छी शिक्षा के अधिकार से वंचित कर रहे है। 

आयोग की दलीलों के अनुसार मदरसे चूंकि शिक्षा के अधिकार क़ानून के तहत नहीं आते है, इसलिए इनमे पढ़ने वाले बच्चे न केवल बाकी स्कुलों में मिलने वाली औपचारिक,ज़रूरी शिक्षा से वंचित रहते है, बल्कि उन्हें RTE एक्ट के तहत मिलने वाले अन्य फायदे  भी नहीं मिल पाते। इन बच्चों को मिड डे मील, लयूनिफॉर्म और स्कूल में पढ़ाने के लिए प्रशिक्षित शिक्षकों जैसी सुविधाएं नहीं मिल पाती।

NCPCR का मानना है कि मदरसों का ज़्यादातर जोर धार्मिक शिक्षा पर ही होता है, मुख्य धारा की शिक्षा में उनकी भागीदारी कम ही होती है

आयोग को मिली जानकारी के अनुसार यूपी, उत्तराखंड मध्यप्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल में बहुत से मदरसों में  इस्लाम के अलावा बाकी धर्मो के बच्चे भी पढ़ रहे है। गैरमुस्लिम बच्चों को भी इस्लाम की,उनकी धार्मिक परम्पराओ की शिक्षा दी जा रही है, जो कि आर्टिकल 28(3) का उल्लंघन है।

राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने SC में दाखिल दलीलों में देवबंद में मौजूद दारुल उलूम मदरसे की वेबसाइट पर मौजूद कई आपत्तिजनक कंटेंट का भी हवाला दिया है। 

कमीशन के मुताबिक दारुल उलूम की वेबसाइट पर मौजूद एक फतवा एक नाबालिग लड़की के साथ फिजिकल रिलेशनशिप को लेकर दिया गया था जो कि ना केवल  भ्रामक है, बल्कि पॉक्सो एक्ट के प्रावधानों का भी सीधे तौर पर हनन है।

इसी तरह  दारुल उलूम की वेबसाइट पर एक फतवा पाकिस्तान के रहने वाले एक शख्स के सवाल पर जारी किया गया था जिसमें उसने गैर मुसलमानों पर आत्मघाती हमले के बारे में सवाल पूछा था दारुउलूम देवबंद ने इस सवाल को गैर कानूनी बताने की बजाय यह बयान जारी किया कि ‘अपने स्थानीय विद्वान से उसे बारे में मशवरा करें’।
कमीशन के मुताबिक दारुल उलूम देवबंद की तरफ से जारी इस तरह के बयान न केवल गैरमुसलमानों पर आत्मघाती हमले को सही ठहरा रहे हैं बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए भी खतरा पैदा कर रहे हैं ।इसी तरह दारुल उलूम का  फतवा गजवा ए हिंद की बात करता है ।कमीशन का कहना है कि  दारुल उलूम इस्लामी शिक्षा का केंद्र होने के चलते इस तरह के फतवे जारी कर रहा है जो कि बच्चों को अपने ही देश के खिलाफ नफरत की भावना से भर रहे हैं।

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