अनिता चौधरी
नई दिल्ली, 14 अप्रैल 2025:
कश्मीर से कन्याकुमारी तक भारत को एक सूत्र में पिरोने का सपना साकार हो रहा है। दक्षिण में श्रीलंका की सीमा के पास पंबन ब्रिज, जो मल्हार की खाड़ी को चीरता हुआ रामेश्वरम के अंतिम छोर तक तिरंगा लहराते हुए पहुंचता है, वहीं दक्षिण के एक अन्य छोर नागरकोविल तक भारतीय रेल की वंदे भारत एक्सप्रेस लोगों को सहज और तेज़ यात्रा का अनुभव करा रही है। नागरकोविल वह स्थान है जहां भारत का भू-भाग समाप्त होता है और हिंद महासागर, बंगाल की खाड़ी तथा अरब सागर का संगम दिखाई देता है।
समुद्र के इस मिलन स्थल के बीच स्थित है विवेकानंद स्मारक। स्वामी विवेकानंद की साधना स्थली जिसे 1963 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक दत्ताजी दीदोलकर के प्रयासों से निर्मित किया गया था। रेल नेटवर्क का यह अद्भुत सफर अब केवल दक्षिण भारत तक सीमित नहीं रहेगा। जल्द ही जम्मू-कश्मीर में भी वंदे भारत एक्सप्रेस की रफ्तार गूंजेगी। चिनाब नदी पर बना विश्व का सबसे ऊंचा रेलवे पुल चिनाब ब्रिज अब तैयार हो चुका है। ये पुल ऐतिहासिक यात्रा का गवाह बनेगा।
पीएम मोदी जम्मू-कश्मीर की पहली वंदे भारत ट्रेन को 19 अप्रैल को दिखाएंगे हरी झंडी
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 19 अप्रैल को जम्मू-कश्मीर की पहली वंदे भारत ट्रेन को हरी झंडी दिखाएंगे। यह उद्घाटन श्री माता वैष्णो देवी कटरा से किया जाएगा, जो 272 किलोमीटर लंबे उधमपुर-श्रीनगर-बारामूला रेल लिंक (USBRL) परियोजना के पूर्ण होने का प्रतीक होगा। चिनाब ब्रिज सिर्फ दो पहाड़ों को नहीं, बल्कि जम्मू-कश्मीर को पूरे भारत से जोड़ने वाले सपनों के एक नए युग का द्वार खोल रहा है। यह पुल जटिल हिमालयी भूगर्भीय क्षेत्र में बना एक अद्भुत इंजीनियरिंग चमत्कार है। भारतीय इंजीनियरिंग की उत्कृष्टता और नवाचार का प्रतीक बन चुका चिनाब ब्रिज आज पूरे विश्व में भारत की तकनीकी शक्ति का डंका बजा रहा है।
359 मीटर है पुल की ऊंचाई, एफिल टॉवर से भी अधिक
सलाल बांध के पास चिनाब नदी पर बने इस पुल की ऊंचाई 359 मीटर है, जो एफिल टॉवर से भी अधिक है। इसकी मुख्य मेहराब की लंबाई 467 मीटर है और यह 266 किलोमीटर प्रति घंटे की हवा की गति सहन कर सकता है। नदी के तल से रेल ट्रैक तक की ऊंचाई कुतुब मीनार से लगभग पांच गुना अधिक है। इसके निर्माण में 28,000 मीट्रिक टन से अधिक स्टील का उपयोग हुआ है। पुल निर्माण में भारतीय रेलवे ने अपनी तरह की पहली केबल क्रेन प्रणाली का भी उपयोग किया है। पंबन ब्रिज और चिनाब ब्रिज जैसे अद्भुत संरचनाओं के साथ भारत ने विश्व मंच पर अपनी इंजीनियरिंग प्रतिभा का परचम लहरा दिया है। कश्मीर से कन्याकुमारी तक वंदे भारत एक्सप्रेस अब केवल रेल यात्रा नहीं, बल्कि एक नए भारत की जीवंत तस्वीर बन गई है।
सामरिक महत्व
चिनाब ब्रिज कश्मीर के जिन क्षेत्रों से होकर गुजरता है, वे पाकिस्तान सीमा के बेहद करीब हैं। ऐसे में विकास और समृद्धि के लिहाज से यह पुल जहां एक तरफ पाकिस्तान की सेना और रेंजर्स को हर समय मुंह चिढ़ाता हुआ नजर आएगा, वहीं अब तक सरहद तक असलाह-बारूद और रसद पहुंचाने के लिए भारत सड़क मार्ग का उपयोग करता था। इस पर पाकिस्तान के माध्यम से चीन भी रडार के जरिये हर गतिविधि पर नजर रखता था। अब सुरंगों के माध्यम से रडार की नजरों से सुरक्षित आवाजाही मुमकिन होगी और रेल के जरिए रसद और असलाह-बारूद पहुंचाना न केवल आसान बल्कि सुरक्षित भी रहेगा। हमारी फौज के जवानों के लिए भी आवाजाही अब सुगम, सरल, सुरक्षित और त्वरित हो जाएगी।
सुरक्षा के इंतजाम और निगरानी
वह दिन दूर नहीं जब रेल मार्ग के जरिए कश्मीर घाटी का संपर्क पूरे देश के साथ 12 महीने बना रहेगा। उधमपुर-बारामूला रेल परियोजना के तहत कई टनल और ब्रिज चिनाब ब्रिज का हिस्सा हैं। सुरक्षा के लिहाज से इन सभी पर निगरानी रखने के लिए कई सेंसर और हाईटेक सीसीटीवी कैमरे लगाए गए हैं, जिन्हें कंट्रोल रूम से मॉनिटर किया जाता है। विश्व का सबसे ऊंचा रेलवे ब्रिज चिनाब ब्रिज तेज भूकंप को भी झेलने में सक्षम है। यह माइन फ्री और ब्लास्ट फ्री भी है। रेलवे पुलिस चौबीसों घंटे इस पुल पर अपनी निगरानी रखेगी।
पुल की लागत और संरचना
अगर लागत की बात करें तो चिनाब पुल, चिनाब दरिया के ऊपर सलाल डेम के पास स्थित है। यह 1,315 मीटर लंबा है और इसका मुख्य आर्क स्पैन 467 मीटर का है, जो इसकी मजबूत संरचना और तकनीकी उत्कृष्टता को दर्शाता है। इस ब्रिज के निर्माण पर लगभग 14,000 करोड़ रुपये की लागत आई है। चिनाब नदी पर बना यह पुल न केवल अपनी भव्यता और ऊंचाई के लिए प्रसिद्ध है, बल्कि इसके डिज़ाइन और तकनीकी विशेषताओं के कारण भी दुनियाभर में चर्चा का विषय है। यह पुल भारतीय रेलवे इंजीनियरिंग की कुशलता का प्रतीक है और देश-विदेश से लोग इसे देखने के लिए आकर्षित होंगे।

चिनाब ब्रिज के साथ जुड़ी और परियोजनाएं
अंजी खाद पुल : समृद्ध कश्मीर के लिए ऊंचाइयों को पाटता सपना
भारत का पहला केबल-स्टेड रेलवे पुल, अंजी खाद पुल, प्रतिष्ठित चिनाब ब्रिज के दक्षिण में अंजी नदी की गहरी घाटी पर फैला हुआ है। यह केवल एक पुल नहीं, बल्कि मानवीय सरलता और प्रकृति की चुनौतियों के बीच एक अद्वितीय विजय गाथा है। उधमपुर-श्रीनगर-बारामुल्ला रेल लाइन के कटरा-बनिहाल खंड को जोड़ने वाला यह पुल जम्मू शहर से लगभग 80 किलोमीटर दूर हिमालय की गोद में स्थित है। बर्फ से ढकी चोटियों की पृष्ठभूमि में बना अंजी खाद पुल हर मौसम में कनेक्टिविटी सुनिश्चित करेगा और पूरे क्षेत्र में यात्रा को सुगम बनाएगा। अंजी खाद पुल, कठिन भूगर्भीय परिस्थितियों, भूकंपीय झटकों, तूफानी हवाओं और समय की कसौटी पर खरा उतरता है। नदी तल से 331 मीटर ऊंचा और 725 मीटर लंबा यह पुल 96 उच्च-तन्यता केबलों द्वारा स्थिर रखा गया है। इसका उल्टा Y आकार का तोरण नींव के शीर्ष से 193 मीटर ऊंचा है और पूरे ढांचे के निर्माण में 8,215 मीट्रिक टन से अधिक संरचनात्मक स्टील का उपयोग हुआ है।

पहाड़ों के बीच ही नहीं, पहाड़ों के नीचे भी प्रगति की फुसफुसाहट
हिमालय की ऊंची चोटियों के बीच, जहां बादल धरती को छूते हैं और घाटियां सदियों पुरानी विरासतों की कहानियां सुनाती हैं, वहीं भारतीय रेलवे ने विकास को एक नई दिशा दी है। न केवल पहाड़ों के बीच रेलमार्ग बनाया गया है, बल्कि पहाड़ों के नीचे सुरंगें बनाकर दूरियों को भी कम किया गया है। उधमपुर-श्रीनगर-बारामुल्ला रेल लिंक (USBRL) परियोजना की भव्यता इसकी सुरंगों में दिखाई देती है। 272 किलोमीटर लंबे इस रेलवे मार्ग में 36 प्रमुख सुरंगें लगभग 119 किलोमीटर क्षेत्र को कवर करती हैं। इनमें से कई सुरंगें इतनी लंबी और जटिल हैं कि उन्होंने वैश्विक इंजीनियरिंग के क्षेत्र में भी एक नया मानक स्थापित किया है।

भारत की लंबी परिवहन सुरंगें
टी-50 (सुंबर-खारी)
लंबाई: 12.77 किमी
भारत की सबसे लंबी परिवहन सुरंग, टी-50, कश्मीर घाटी को देश से जोड़ती है। क्वार्टजाइट, गनीस और फ़िलाइट चट्टानों के बीच बनी यह सुरंग मुख्य मार्ग और समानांतर एस्केप सुरंग के साथ हर 375 मीटर पर क्रॉस-पैसेज से जुड़ी है। निर्माण में भूस्खलन, उच्च जल प्रवेश जैसी चुनौतियाँ शामिल रहीं।
टी-80 (बनिहाल-काजीगुंड)
लंबाई: 11.2 किमी
पीर पंजाल रेंज के नीचे बनी टी-80 सुरंग जम्मू-कश्मीर के बीच सालभर संपर्क बनाए रखती है। इसे USBRL परियोजना की ‘रीढ़’ भी कहा जाता है।
टी-34 (पाई-खड्ड-अंजी खड्ड)
लंबाई: 5.099 किमी
सिरबन डोलोमाइट चट्टानों के बीच बनी टी-34, ट्विन-ट्यूब डिज़ाइन वाली सुरंग है, जो भारत के पहले केबल-स्टेड रेलवे पुल, अंजी खड्ड ब्रिज से जुड़ती है। हर 375 मीटर पर क्रॉस-पैसेज से जुड़ाव इसे सुरक्षित और कुशल बनाता है।
यूएसबीआरएल सुरंगें : हिमालय के दिल में कनेक्टिविटी की जीवन रेखाएं
टी-33: त्रिकुटा की छाया में चुनौती
लंबाई: 3.2 किमी, स्थान: कटरा-बनिहाल खंड
त्रिकुटा पहाड़ियों के तल से गुजरने वाली यह सुरंग भूवैज्ञानिक चुनौतियों का सामना करती है, जिसमें 2017 का बड़ा पतन भी शामिल था।
टी-23: सबसे लंबी सुरंग
लंबाई: 3.15 किमी, स्थान: उधमपुर-चक रखवाल
गंभीर भू-तकनीकी समस्याओं के बावजूद, यह सुरंग परियोजना का एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर साबित हुई।
टी-1: अत्याधुनिक तकनीक से निर्माण
लंबाई: 3.209 किमी
मुख्य सीमा थ्रस्ट द्वारा उत्पन्न चुनौतियों को पार करते हुए, उन्नत सुरंग निर्माण तकनीकों से इस सुरंग का निर्माण संभव हुआ।
टी-25: भूमिगत जलधारा की चुनौती
लंबाई: 3 किमी
भूमिगत जलधारा के कारण हुई बाधाओं को पार करने के लिए परियोजना टीम ने अभिनव इंजीनियरिंग समाधानों का इस्तेमाल किया।
इन सुरंगों के निर्माण ने कश्मीर घाटी को भारत के हृदय से जोड़ने का मार्ग प्रशस्त किया और भारत के दृढ़ संकल्प को दर्शाया।
