काशीवासी जिन्हें शनिदेव मानकर चढ़ा रहे थे तेल, वो निकले महाबलेश्वर महादेव

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वाराणसी,14 सितंबर,2024

महादेव की नगरी काशी विश्वनाथ की सबसे प्राचीन नगरियों और तीर्थ धामों में से एक है। यह नगरी अद्भुत रहस्यों से भरी पड़ी है महादेव के कंठ में यदि राम नाम का जाप चलता है तो उनके हृदय में काशी वास करती है। कहते हैं काशी के कंकर कंकर में शंकर है, तभी तो काशीवासी जिस पत्थर को शनिदेव समझकर पूज रहे थे वो शंकर निकले।

वाराणसी के सूरजकुंड मोहल्ले में कई दशकों से जमीन के अंदर धंसा शिवलिंग अब उभरकर सामने आ गया है। केंद्रीय ब्राह्मण महासभा के प्रदेश अध्यक्ष अजय शर्मा की पहल पर वीडीए ने जब मोहल्ले में खुदाई कराई तो सात इंच का विग्रह जमीन में ढाई फीट से अधिक नीचे था। अजय शर्मा ने बताया कि काशी में स्वयंभू प्राकट्य महाबलेश्वर लिंग मुखलिंग है। काशी में अज्ञानतावश लोग इन्हें शनिदेव समझकर पूजा करते रहे। जबकि, स्कंद पुराण में महाबलेश्वर महादेव के सांबादित्य के पास होने के प्रमाण मिलते हैं। यह काशी के 68 आयतन देवताओं की तरह ही गोकर्ण से काशी आए थे।

दशकों तक जमीन के अंदर धंसे महाबलेश्वर महादेव के दर्शन अब आम श्रद्धालुओं के लिए सुलभ होगा। मंदिर में पूजन का इंतजाम कराने के लिए श्री काशी विश्वनाथ मंदिर न्यास को जिम्मेदारी दी जाएगी।

महाबलेश्वर महादेव सामने आने के बाद काशीवासी भव्य मंदिर बनाने की तैयारी में जुट गए है। जिस पत्थर को काशी वासी शनिदेव समझकर अभी तक तेल चढ़ा रहे थे, अब उसी पत्थर को महाबलेश्वर रूप जानने के बाद दुग्धाभिषेक करेंगे।

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