ग्वालियर, 30 अक्टूबर, 2024
देश का एक मात्र यमराज मंदिर ग्वालियर में है, जो लगभग 300 वर्ष पुराना है। दीपावली के एक दिन पहले नरक चौदस पर यमराज की पूजा के साथ उनका वैदिक मंत्रोच्चार के साथ अभिषेक किया जाता है। साथ ही यमराज से मन्नत मांगी जाती है, कि वह उन्हें अंतिम दौर में कष्ट न दें…।
सिंधिया राजवंश से है मंदिर का नाता
ग्वालियर में फूलबाग़ चौराहे के समीप मार्कडेश्वर मंदिर है। यहीं यमराज की प्रतिमा स्थापित है। बताया जाता है कि मंदिर की स्थापना सिंधिया राजवंश के राजाओं ने लगभग 300 साल पहले इस मंदिर की कराई थी। यमराज की नरक चौदस पर पूजा अर्चना करने को लेकर धार्मिक मान्यता है। जिसका पौराणिक कथाओं में उल्लेख मिलता है। मान्यता है कि यमराज ने जब भगवान शिव की तपस्या की थी। यमराज की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने यमराज को वरदान दिया था कि आज से तुम हमारे गण माने जाओगे और दीपावली से एक दिन पहले नरक चौदस पर जो भी तुम्हारी पूजा अर्चना और अभिषेक करेगा, उसे सांसारिक कर्म से मुक्ति मिलने के बाद उसकी आत्मा को कम से कम यातनाएं सहनी होंगी। साथ ही उसे स्वर्ग की प्राप्ति होगी। तभी से नरक चौदस पर यमराज की विशेष पूजा अर्चना की जाती है।
खास तरीके से होती है यमराज की पूजा
यमराज की पूजा अर्चना भी ख़ास तरीके से की जाती है। पहले यमराज की प्रतिमा पर घी, तेल, पंचामृत, इत्र, फूलमाला, दूध-दही, सहद आदि से यमराज का अभिषेक किया जाता है। उसके बाद दीप दान किया जाता है। इसमें चांदी के चौमुखी दीपक से यमराज की आरती उतारी जाती है। यमराज की पूजा करने दूरदराज से लोग ग्वालियर आते हैं और यमराज को अपनी आराधना से प्रसन्न करने की कोशिश करते हैं। संभवतः यमराज का ये मंदिर देश का इकलौता मंदिर है। यही वजह है कि लोगों की श्रद्धा का केंद्र बना हुआ है। यहां हर वर्ष नरक चौदस पर देश भर से श्रृद्धालु आते हैं। मंदिर के पुजारी के अनुसार लोग यमराज की पूजा-अर्चना करते हैं और अंतिम समय में उन्हें कष्ट न हो, इसके लिए याचना करते हैं।