नई दिल्ली, 23 अप्रैल 2025:
भगवान परशुराम, जिन्हें विष्णु जी का छठा अवतार माना जाता है, को उनके प्रचंड क्रोध और धर्म की रक्षा के लिए प्रसिद्ध किया गया है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, परशुराम ने 21 बार पृथ्वी को क्षत्रिय विहीन कर दिया था। आखिर उन्होंने ऐसा क्यों किया? इसके पीछे एक गहन पौराणिक कथा जुड़ी हुई है।
महर्षि जमदग्नि के पुत्र परशुराम को परशु (कुल्हाड़ी) धारण करने के कारण ‘परशुराम’ कहा गया। कथा के अनुसार, महिष्मती के राजा सहस्त्रार्जुन (जिसे सहस्त्रबाहु भी कहा जाता है) ने अपनी शक्ति के मद में चूर होकर धर्म की सभी सीमाएं लांघ दी थीं। उसने न केवल ऋषियों को सताया, बल्कि धार्मिक ग्रंथों और वेदों का भी अपमान किया।
एक दिन जब वह ऋषि जमदग्नि के आश्रम में पहुँचा, तो वहाँ की दिव्य गाय ‘कामधेनु’ की अद्भुत शक्तियों को देखकर उसे पाने की लालसा में उसने आश्रम को उजाड़ दिया और कामधेनु को ले जाने की कोशिश की। इसके बाद जब परशुराम को इस अपमान और अन्याय का पता चला, तो उन्होंने सहस्त्रार्जुन का वध कर दिया।
वध के पश्चात परशुराम तीर्थ यात्रा पर निकल गए, परंतु इसी दौरान सहस्त्रार्जुन के पुत्रों ने बदला लेने के लिए तपस्यारत जमदग्नि ऋषि की हत्या कर दी। जब परशुराम वापस लौटे और अपने पिता का कटा हुआ सिर व 21 घाव देखे, तो उन्होंने प्रतिज्ञा ली कि वे समस्त क्षत्रिय वंश का नाश करेंगे।
इस प्रतिज्ञा को उन्होंने 21 बार पूरा किया और पृथ्वी को क्षत्रिय विहीन कर दिया। कहते हैं उन्होंने क्षत्रियों के रक्त से पांच सरोवर भर दिए। अंततः ऋषि ऋचीक के हस्तक्षेप के बाद यह संहार रुका और परशुराम ने अपने पितरों की श्राद्ध क्रिया एवं यज्ञ संपन्न किए।
यह कथा धर्म, न्याय और प्रतिशोध की एक गहन मिसाल मानी जाती है।