“भिक्षा से पेट भरते, पर ‘माया’ को नहीं छूते: जंगम साधुओं की अनोखी कहानी”

mahi rajput
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प्रयागराज,7 जनवरी 2025

प्रयागराज महाकुंभ मेला के दौरान जंगम साधु अपने अनोखे रूप में शिव भजन गाते हुए नजर आते हैं। गेरुआ लुंगी-कुर्ते, सिर पर दशनामी पगड़ी और पगड़ी पर मोरपंखों का गुच्छा और तांबे-पीतल के बने गुलदान में मोर पंख सजाए होते हैं। इनकी पहचान विशेष रूप से टल्ली नामक घंटी में दान स्वीकार करने से होती है। जंगम साधु न तो हाथ में भिक्षा लेते हैं, न ही किसी से सीधे दान की मांग करते हैं। वे हमेशा अपनी टल्ली को उलटकर उसमें दान स्वीकार करते हैं, क्योंकि उनकी मान्यता के अनुसार भगवान शिव का आदेश था कि माया को हाथ में न लें।

जंगम साधुओं की उत्पत्ति से जुड़ी दो प्रमुख कथाएं हैं। पहली के अनुसार, भगवान शिव ने अपनी जांघ से रक्त गिराकर जंगम साधुओं की उत्पत्ति की। दूसरी कथा के अनुसार, शिव-पार्वती के विवाह के समय भगवान शिव ने जंगम साधुओं को उत्पन्न किया ताकि वे दक्षिणा लेकर विवाह की रस्में पूरी कर सकें। आज भी जंगम साधु शिव-पार्वती विवाह जैसे अनुष्ठानों को सम्पन्न कराने के अधिकार रखते हैं। ये साधु भारत के विभिन्न हिस्सों में अलग-अलग नामों से प्रसिद्ध हैं, जैसे जंगम बाबा, जंगम योगी और जंगम अय्या।

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