वाराणसी, 23 सितंबर:
अंशुल मौर्य ,
• श्रद्धालु अब घर बैठे अभक्ष्य प्रसाद ग्रहण करने का प्रायश्चित कर सकेंगे।
• काशी विद्वत कर्मकांड परिषद ने समाधान दिया है और जल्द ही एक पत्र जारी किया जाएगा।
तिरुपति मंदिर के प्रसाद में जानवरों की चर्बी मिलने की खबर के बाद पूरे देश के सनातन धर्मी श्रद्धालुओं में भारी आक्रोश और चिंता का माहौल है। तिरुपति बालाजी के प्रसाद को अत्यधिक पवित्र और देवताओं का आशीर्वाद माना जाता है। ऐसी स्थिति में अभक्ष्य वस्त्र के प्रसाद में मिलावट की खबर से धार्मिक भावनाएं आहत हुई हैं। जो लोग इस प्रसाद को ग्रहण कर चुके हैं, वे अब खुद को दोषी महसूस कर रहे हैं और इस कारण उनका मानसिक शांति भंग हो रही है। इसी संकट से निपटने के लिए काशी विद्वत कर्मकांड परिषद ने एक महत्वपूर्ण पहल करते हुए समाधान का प्रस्ताव दिया है।
परिषद का समाधान
काशी विद्वत कर्मकांड परिषद, जो धर्म और कर्मकांड से जुड़े मामलों में गहरी विशेषज्ञता रखती है, ने यह घोषणा की है कि ऐसे श्रद्धालु जिन्होंने इस अभक्ष्य प्रसाद को ग्रहण किया है, वे पंचगव्य के माध्यम से प्रायश्चित कर सकते हैं। परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष और श्री काशी विश्वनाथ मंदिर न्यास के पूर्व अध्यक्ष आचार्य अशोक द्विवेदी ने इस मुद्दे पर अपनी गहरी चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि तिरुपति मंदिर के प्रसाद में ऐसी चीज़ों का मिलना सनातन धर्म की भावनाओं को ठेस पहुंचाने की कोशिश है।
आचार्य अशोक द्विवेदी ने कहा, “यह घटना अत्यंत चौंकाने वाली है और सनातन धर्म के अनुयायियों की गहरी धार्मिक भावनाओं के साथ खिलवाड़ का प्रयास है। तिरुपति मंदिर के न्यास बोर्ड को तत्काल भंग कर दिया जाना चाहिए और इस मामले की निष्पक्ष जांच के लिए न्यायाधीश की देखरेख में एक समिति का गठन किया जाना चाहिए।”
उन्होंने आगे कहा, “अभक्ष्य प्रसाद को ग्रहण करने वाले श्रद्धालुओं के मन में जो पाप का भाव उत्पन्न हुआ है, उसे दूर करने के लिए प्रायश्चित आवश्यक है। काशी विद्वत कर्मकांड परिषद इस पाप से मुक्त होने के लिए आवश्यक धार्मिक अनुष्ठानों और प्रायश्चित की प्रक्रिया में श्रद्धालुओं की सहायता करेगा।”
प्रायश्चित की प्रक्रिया
आचार्य द्विवेदी ने बताया कि प्रायश्चित के आदि देवता नारायण हैं, और तिरुपति में विराजमान भगवान बालाजी स्वयं नारायण के रूप में पूजित हैं। उन्होंने यह सुझाव दिया कि श्रद्धालु पंचगव्य का प्राशन करके अपने पापों का प्रायश्चित कर सकते हैं। पंचगव्य में गाय का मूत्र, गोबर, दूध, दही, और घी सम्मिलित होते हैं, जिन्हें धार्मिक मंत्रों द्वारा अभिमंत्रित किया जाएगा।
प्रायश्चित की विधि के बारे में विस्तार से बताते हुए आचार्य द्विवेदी ने कहा कि इसके लिए भगवान विष्णु या शालिग्राम की मूर्ति की स्थापना की जाएगी और सर्वप्रायश्चित विधान का आयोजन किया जाएगा। जिन लोगों ने अभक्ष्य प्रसाद ग्रहण किया है, उन्हें तत्काल पंचगव्य का सेवन करना चाहिए। इसके लिए निम्न मंत्रों का उच्चारण करना अनिवार्य होगा:
- गोमूत्र: गायत्री मंत्र से अभिमंत्रित करें।
- गोमय (गोबर): इति मंत्र से अभिमंत्रित करें।
- गो दुग्ध (दूध): आपियायश्वसमेति मंत्र से अभिमंत्रित करें।
- गो दधि (दही): दधिकराग्रे मंत्र से अभिमंत्रित करें।
- गोघृत (घी): एजोसि मंत्र से अभिमंत्रित करें।
- गंगाजल या क्षेत्रीय नदी का जल: देवस्यत्वा मंत्र से अभिमंत्रित करें।
इसके साथ ही त्रिकुश बनाकर कुशा की जड़ से पंचगव्य का मिश्रण तैयार किया जाएगा। इसके बाद यत्वगस्तिगतम पापं श्लोक से 12 बार “ऊं” का उच्चारण करके पंचगव्य का प्राशन करना होगा। यह प्रायश्चित विधि श्रद्धालुओं को मानसिक शांति और धार्मिक आस्था की पुनर्स्थापना में सहायता करेगी।
आचार्य द्विवेदी ने यह भी कहा कि परिषद जल्द ही एक प्रायश्चित हवन का आयोजन करेगा, जिसमें अभक्ष्य प्रसाद ग्रहण करने वाले श्रद्धालु सामूहिक रूप से प्रायश्चित कर सकेंगे। परिषद इस संबंध में जल्द ही एक पत्र जारी करेगी, जिसमें हवन की तारीख, समय और स्थान की जानकारी दी जाएगी।
तिरुपति प्रसाद में हुई इस घटना से सनातन धर्म के अनुयायियों की भावनाएं गहरे आहत हुई हैं, और काशी विद्वत कर्मकांड परिषद द्वारा प्रस्तावित यह समाधान श्रद्धालुओं के लिए मानसिक शांति और धार्मिक विश्वास की पुनर्स्थापना का मार्ग प्रशस्त करेगा।