महाकुंभनगर, 2 जनवरी 2025:
प्रयाग की धरती पर 144 वर्षों बाद पूर्ण महाकुंभ का आयोजन होने जा रहा है। महाकुंभ की हर प्रक्रिया का अपना महत्व होता है। शाही स्नान हो… अखाडे़ हों… या फिर साधू संत। सनातन के इस महापर्व में 6 स्नान होते हैं जहां से आखाड़ों की भूमिका शुरू होती है।
कुंभ मेले की सबसे अहम परंपरा है शाही स्नान
महाकुंभ में देश दुनिया के लोग डुबकी लगाने को उत्सुक हैं। प्रयागराज में लगने वाले महाकुंभ का विशेष महत्व माना जाता है। कहते है कि यहां होने वाले शाही स्नान में अगर कोई डुबकी लगाता है तो उसे पुण्य की प्राप्ति होती है। यह बेहद शुभकारी माना जाता है क्योंकि प्रयागराज में गंगा, यमुना और सरस्वती का मिलन होता है। सालों बाद लगने वाले इस महांकुभ का इंतजार साधु-संत, महात्मा करते हैं। इसमें महात्माओं और साधु-संतों का सम्मान पूर्वक स्नान करवाया जाता है जिसे शाही स्नान कहा जाता है। शाही स्नान कुंभ मेले की सबसे अहम परंपरा है। ये श्रद्धा और आस्था का प्रतीक है। इसका उद्देश्य सिर्फ शारीरिक शुद्धता नहीं बल्कि आत्मिक शुद्धता भी प्राप्त करना है। इसके कई नियम होते हैं जिनका श्रद्धालुओं को पालन करना पड़ता है जो इस अनुभव को और भी पवित्र बनातथा होता।
स्नान में साबुन या शैंपू का इस्तेमाल करना है वर्जित
शाही स्नान में सबसे पहले साधु संत पवित्र जल में डुबकी लगाते हैं और फिर आम श्रद्धालु स्नान करते है। मान्यताओं की मानें तो शाही स्नान के दौरान जल में ग्रहों और नक्षत्रों के प्रभाव के कारण अद्भुत शक्तियां समाहित हो जाती हैं जो शरीर और आत्मा की शुद्धि के लिए बेहद लाभकारी होती हैं। इसलिए स्नान के समय किसी भी प्रकार के साबुन या शैंपू का इस्तेमाल करना वर्जित होता है क्योंकि यह पवित्र जल को अशुद्ध कर सकता है। स्नान के बाद श्रद्धालु गरीबों को दान देते हैं, जिसमें वस्त्र, अन्न और अन्य जरुरत की चीजें शामिल होती हैं।
ये हैं शाही स्नान की तिथियां
पहला शाही स्नान– 13 जनवरी 2025– पौष पूर्णिमा
दूसरा शाही स्नान- 14 जनवरी 2025- मकर संक्रांति
तीसरा शाही स्नान– 29 जनवरी 2025– मौनी अमावस्या
चौथा शाही स्नान– 3 फरवरी 2025– बसंत पंचमी
पांचवा शाही स्नान– 12 फरवरी 2025– माघी पूर्णिमा
आखिरी शाही स्नान–26 फरवरी 2025– महाशिवरात्रि